कुंभ और महाकुंभ के दौरान अखाड़ों में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेदारी कोतवालों की होती है। कोतवाल अखाड़े के नियमों का उल्लंघन करने वाले संतों को सजा भी देते हैं। 2013 के महाकुंभ में 107 और 2019 के कुंभ मेला में 181 संतों को कोतवालों ने नियमों का उल्लंघन करने पर सजा दी थी। जो संत एक कुंभ-महाकुंभ में कोतवाल बन जाता है उसे दोबारा नहीं बनाया जाता...
जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। अखाड़ों के भीतर अलग दुनिया है। अनूठी परंपराएं, नियम-कायदे हैं। पद-प्रतिष्ठा पाने वाले लोग अक्सर नियम का उललंघन करके कार्रवाई से बच जाते हैं। या यूं कहें कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत पुलिस-प्रशासन नहीं जुटा पाता। अखाड़ों में ऐसा नहीं है, सामान्य महात्मा से लेकर अखाड़े के मुखिया आचार्य महामंडलेश्वर तक नियम-कानून में बंधे हैं। कुंभ व महाकुंभ में अखाड़ों का शिविर लगते ही कोतवाली बनाकर कोतवाल नियुक्ति किए जाते हैं। इनके जिम्मे अखाड़े की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था रहती...
कोतवाल के सैनिक होते हैं। उनके लिए कोतवाल का आदेश सर्वोपरि होता है। छावनी प्रवेश व राजसी स्नान के समय कोतवालों के ऊपर भीड़ नियंत्रण करने की जिम्मेदारी होती है। उसमें उग्र नागा संन्यासी भी कोतवालों के सामने अनुशासनहीनता नहीं करते। मढ़ी का रखा जाता है ध्यान जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि के अनुसार अखाड़ों की कार्यप्रणाली निष्पक्ष होती है। सबको समान भाव से देखा जाता है। कोतवाल की नियुक्ति में उसका ध्यान रखा जाता है। गिरि, पुरी, वन, भारती, लामा प्रमुख मढ़ियां हैं। जो...
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