अजोला एक जलीय पौधा है जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और पशुओं के लिए एक बेहतरीन चारा है. इससे दूध उत्पादन में वृद्धि, पशुओं का स्वास्थ्य सुधार और अंडों की गुणवत्ता में उन्नति होती है.
रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के कृषि प्रभारी अधिकारी शिव शंकर वर्मा ने बताया कि अजोला एक जलीय पौधा है जो तालाबों, झीलों और गड्ढों में ठहरे हुए पानी में अपने आप उग आता है. इस पौधे को पशुओं के हरे चारे के रूप में दिया जा सकता है. इसके अलावा, मुर्गियों और मछलियों को भी अजोला खिलाया जाता है. वर्मा ने बताया कि पशुओं को रोजाना अजोला खिलाने से 10 से 15 दिन के बाद दूध में काफी बढ़ोतरी देखने को मिलती है. अजोला मछलियों को खिलाने से उनकी संख्या और उनका वजन भी जल्दी बढ़ता है.
वहीं, अगर मुर्गियों को फीड के तौर पर अजोला दिया जाता है, तो उनके अंडों की गुणवत्ता बेहतर होती है. शिव शंकर वर्मा ने बताया कि पोषक तत्वों से भरपूर अजोला की पत्तियों में अजोलीना नाम का हरित शैवाल पाया जाता है. बहुत ही कम समय में तैयार होने वाला यह हरा चारा पशुओं के साथ ही फसलों के लिए किसी अमृत से कम नहीं है. अजोला में सभी सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं. इसमें बोरान, आयरन और फाइबर प्रचुर मात्रा में होते हैं. इसके अलावा, पानी में उगने वाली इस घास में शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60 प्रतिशत प्रोटीन, 10-15 प्रतिशत खनिज एवं 7-10 प्रतिशत एमिनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं जैव पॉलिमर्स वगैरह पाए जाते हैं. इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा बहुत कम होती है. किसान अपने पशुओं को इस हरे चारे के रूप में एक से दो किलोग्राम रोज खिलाएं, जिससे दूध में बढ़ोतरी होने के साथ ही पशु का स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा. साथ ही, पशुओं को देने से पहले ध्यान देना होगा कि इसे गड्ढे से निकालकर तीन से चार बार साफ पानी से धो लें, उसके बाद ही पशु को खिलाएं. अगर आप अजोला को तैयार करना चाहते हैं, तो उसके लिए एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लंबी कंक्रीट की क्यारी बना लें, जिसकी गहराई करीब एक फीट हो. उसके बाद उसमें नीचे थोड़ी मिट्टी डालने के बाद पानी भर दें. 200 से 400 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट रासायनिक खाद पानी में डाल दें. इसके बाद इसमें अजोला खुद ही तैयार हो जाएगा. पहले दक्षिणी भारत में अजोला का प्रचलन था, लेकिन अब उत्तरी भारत में भी इसकी काफी मांग बढ़ रही है
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