करीब 850 साल से, बीहड़ वाले बाबा की मजार पर हर धर्म के लोग अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए आते हैं. इस मजार को अद्भुत चमत्कारों का स्थल माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि यहां दो शेर अपनी पूंछ से सफाई करते हैं और फिर रहस्यमय तरीके से बीहड़ों में गायब हो जाते हैं.
इस मजार की चमत्कारिक शक्ति पर विश्वास करते हुए, जंगल की कठिनाइयों का सामना करते हुए, बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और युवा बिना किसी डर के यहां श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं. ये परंपरा आज से नहीं, बल्कि लगभग 850 वर्षों से चली आ रही है. गुरुवार के दिन मजार पर ऐसा दृश्य होता है जैसे किसी घने जंगल में नहीं, बल्कि किसी बड़े शहर के बाजार में लोग एकत्र हुए हों. सुबह से लेकर देर शाम तक श्रद्धालुओं का आना-जाना जारी रहता है.
ये बाबा के चमत्कार का असर है कि यहां कोई भी व्यक्ति बिना किसी भय के आ सकता है. लोगों का मानना है कि जो भी इस मजार पर कुछ मांगता है, उसकी मुराद जरूर पूरी होती है और वह बार-बार मजार पर आकर श्रद्धा अर्पित करता है. कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी और राजा सुमेर शाह के युद्ध के दौरान, मोहम्मद गौरी के सेनापति शमसुद्दीन इस बीहड़ में नजर रखते थे. उनके निधन के बाद उनकी मजार यहां स्थापित की गई.
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