ईरान में हिजाब को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है. एक दशक से अधिक समय से इसे लेकर प्रदर्शन होते रहे हैं जिनमें महिलाओं ने विशेष रूप से हिस्सा लिया है और अहम भूमिका निभाई है. अहौ दारियाई और महसा अमीनी के अलावा मसीह अलीनेजाद, निका शाकर्रामी और हदीस वो नाम हैं जिन्होंने हिजाब विरोधी आंदोलन को आगे बढ़ाया.
शरिया कानून को मानने वाला ईरान दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां ड्रेस कोड को लेकर बेहद सख्त नियम हैं. खासकर महिलाओं के लिए. इन नियमों की सख्ती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सिर्फ सिर न ढककर बाहर निकलने के लिए सार्वजनिक रूप से कोड़े या कई साल की जेल तक हो सकती है. दो साल पहले हिजाब से संबंधित ये नियम पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बने जब ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं ने क्रांति कर दी थी. अब एक बार फिर ईरान और हिजाब को लेकर उसकी सख्ती सुर्खियों में है.
ये फोटो तब का था, जब मसीह अलीनेजाद ईरान में थीं. इसमें भी वो हिजाब नहीं पहने हुई थीं. ईरान की महिलाओं ने भी बिना हिजाब के उन्हें अपनी फोटो भेजना शुरू कर दिया और इस तरह एक आंदोलन का जन्म हुआ.2014 में हिजाब के खिलाफ विरोध के लिए माय स्टील्थी फ्रीडम नामक एक फेसबुक पेज बनाया गया. इस पेज के जरिए एकत्रित हुईं महिलाओं ने सोशल मीडिया पर 'मेरी गुम आवाज' , हिजाब में पुरुष , मेरा कैमरा मेरा हथियार है जैसी कई पहल कीं. मई 2017 में White Wednesday अभियान चलाया गया.
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