आईआईटी कानपुर ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए उम्मीद की किरण जगा दी है

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आईआईटी कानपुर ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए उम्मीद की किरण जगा दी है
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आईआईटी कानपुर ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए एक नई रोबॉटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया है जो मरीजों की पूरी तरह से रिकवरी करा सकता है।

आईआईटी कानपुर ने ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों के लिए उम्मीद की किरण जगा दी है। मेकैनिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट की लैब में विकसित एक ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस आधारित रोबॉटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया गया है जो उन मरीजों की पूरी तरह से रिकवरी कराएगा जिनके हाथों ने स्ट्रोक की वजह से काम करना बंद कर दिया है। प्रोफेसर आशीष दत्ता ने बताया कि भारत और यूके में शुरुआती ट्रायल में मरीजों की 100% रिकवरी हुई है। अब आईसीएमआर के निर्देशन में चेन्नई के अपोलो अस्पताल में दो साल का क्लिनिकल ट्रायल चलेगा। भारत

में ब्रेन स्ट्रोक के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। अनियमित जीवन शैली, तनाव और अन्य कारणों से लोगों का ब्लड प्रेशर गड़बड़ रहता है। 1990 के मुकाबले इस दशक में भारत में ब्रेन स्ट्रोक के केस में 51% की बढ़ोतरी देखी गई है। सिर्फ 2021 में भारत में ब्रेन स्ट्रोक के 12.50 लाख नए केस आए थे। प्रोफेसर आशीष दत्ता ने बताया कि मस्तिष्क के मोटरकॉर्टेक्स एरिया में खून का थक्का जमने पर हाथ काम करना बंद कर देते हैं। जब स्ट्रोक का असर ब्रेन के दाईं तरफ होता है तो बायां हाथ काम करना बंद कर देता है। बाएं ब्रेन में स्ट्रोक का असर होने पर दायां हाथ काम नहीं करता। इसका कोई इलाज भी नहीं है। आमतौर पर माना जाता है कि 6 या 12 महीने बाद ब्रेन स्ट्रोक का मरीज ठीक नहीं हो सकता।15 साल से चल रही थी रिसर्च इस समस्या से निपटने के लिए पिछले 15 साल से रिसर्च चल रही थी। भारत सरकार और यूनाइटेड किंगडम की एक संस्था की मदद से एक ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस आधारित रोबॉटिक हैंड एक्सोस्केलेटन विकसित किया गया। सामान्य तौर पर होता ये है कि फिजियोथेरेपिस्ट स्ट्रोक के मरीजों के हाथ को कसरत करवाते हैं, लेकिन ये कवायद तब तक बेकार होती है, जब तक ब्रेन का फोकस भी हाथ पर न हो। मरीजों की 100% हुई रिकवरी बीसीआई के इस्तेमाल में मरीज को पहले सिर पर एक कैप पहनाई जाती है। ब्रेन के सिग्नल काफी छोटे होते हैं, इसलिए उन्हें पकड़ने के लिए कैप के छिद्रों में कंडक्टिविटी जेल लगाया जाता है। प्रोफेसर दत्ता ने बताया कि इसके बाद स्क्रीन पर कुछ निर्देशों का पालन करने के बाद सोचने के लिए कहा जाता है। जब मरीज हाथ पर फोकस कर सोचेगा तो सिग्नल मिलेंगे। इसके बाद रोबॉटिक मशीन के जरिए कसरत कराई जाती है। इस पूरी कवायद का मकसद ब्रेन को व्यस्त करना है। कसरत हफ्ते में 2 बार और 3 महीने तक कराई जाती है। उन्होंने बताया कि कानपुर के एक निजी अस्पताल और यूके के अस्पताल में 4-4 मरीजों की 100 रिकवरी हुई है। ये सभी केस 1-2 साल पुराने थे। चेन्नई में अगले 2-3 साल क्लिनिकल ट्रायल चलेंगे। फिलहाल ऐसी कोई डिवाइस दुनिया में नहीं है।

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