16 नवंबर 2024 की सुबह। उत्तर प्रदेश का शहर झांसी। मेडिकल कॉलेज जाने वाली सड़क की सफाई चल रही है और दोनों तरफ चूना डाला जा रहा है। यहां कोई प्रभात फेरी नहीं होने वाली, बल्कि डिप्टी सीएम बृजेश पाठक आ रहे हैं। उस अस्पताल,
सवाल 6: भारत में हादसों से सबक क्यों नहीं लेते? जवाब: इस तरह के आग के हादसे का ये पहला मामला नहीं है। आगजनी के हादसों की लिस्ट बहुत लंबी है… टीआरपी गेम जोन आगजनी 26 जुलाई 2024 को गुजरात के राजकोट में टीआरपी गेम जोन में आग लगने से 28 लोगों की मौत हो गई थी। यहां भी आग लगने की वजह इलेक्ट्रिक शॉक बताए गए। जांच में पता चला था कि गेम जोन के लिए RMC के अग्निशमन विभाग से NOC नहीं लिया गया था। बेबी केयर सेंटझांसी में जिंदा जले 10 नवजात बच्चों का गुनहगार कौन; कल की टॉप खबर पर वो सबकुछ जो जानना जरूरी16...
दोनों ही वर्जन में जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में स्पार्किंग, मेंटेनेंस न होने या ज्यादा लोड की वजह से हुई होगी। अगर लापरवाही नर्स की है तो उसकी ट्रेनिंग पर सवाल खड़े होते हैं। इस एक्ट के तहत घर, स्कूल, कॉलेज, ऑर्गनाइजेशंस, विधानसभा, बिजनेस ऑफिस, कॉमर्शियल ऑफिस, अस्पताल समेत सभी इमारतों में फायर एक्सटिंग्विशर यानी अग्निशामक यंत्र लगा होना चाहिए। इसकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए।डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बताया कि फरवरी में अग्नि सुरक्षा ऑडिट किया गया था। जून में मॉक ड्रिल भी की गई थी। आग लगने के बाद वार्ड बॉय ने फायर फाइटिंग के सिलेंडरों को खोलकर चलाया, लेकिन आग ऑक्सीजन की वजह से लगी थी, इसलिए तेजी से भड़क गई। हॉस्पिटल में फायर अलार्म सिस्टम लगे...
महोबा के रहने वाले परिजनों के मुताबिक, अस्पताल के डॉक्टर्स भाग गए थे। अगर डॉक्टर भागे नहीं होते तो वे लोग भी झुलस गए होते।यहां भी अस्पताल प्रबंधन और फायर ब्रिगेड दोनों की गलती सामने आती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अस्पताल में इमरजेंसी एग्जिट पर ताला लगा हुआ था। फायर ब्रिगेड को पहुंचने में करीब 20 मिनट लगे, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अगर समय रहते आग पर काबू पा लिया जाता, तो बच्चों को बचाया जा सकता था।भीषण आग लगने की सूचना पर 20 मिनट बाद फायर ब्रिगेड की 6 गाड़ियां पहुंचीं। फायर फाइटर्स ने...
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