आज का शब्द: स्वायत्त और अज्ञेय की रचना- कभी कभी मेरी आँखों के आगे

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आज का शब्द: स्वायत्त और अज्ञेय की रचना- कभी कभी मेरी आँखों के आगे
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' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- स्वायत्त , जिसका अर्थ है- जिसका शासन उसी के लोग चलाते हों। प्रस्तुत है अज्ञेय की रचना- कभी कभी मेरी आँखों के आगे कभी-कभी मेरी आँखों के आगे से मानो एकाएक परदा हट जाता है- और मैं तुम में निहित सत्य को पहचान लेता हूँ। प्रेम में बन्धन नहीं है। हमें जो प्रिय वस्तु को स्वायत्त करने की इच्छा होती है- वह इच्छा जिसे हम प्रेम का आकर्षण कहते हैं- वह केवल हमारी सामाजिक अधोगति का एक गुबार है। हमने प्रेम की सरलता नष्ट कर दी है। हमने अपने धार्मिक और...

संस्कारों में बाँध कर उसे एक मोह-जाल मात्र बना दिया है। प्रेम आकाश की तरह स्वच्छ और सरल है। हम और तुम उस में उडऩे वाले पक्षी हैं-चाहे किधर भी उड़ें, उस का विस्तार हमें घेरे रहता है और हमें धारण करता है। और उसके असीम ऐक्य में लीन हो कर भी हम एक-दूसरे के अधीन नहीं होते, अपना स्वतन्त्र व्यक्तित्व नहीं नष्ट करते। 'बन्धन में स्वातन्त्र्य' नामक शब्दजाल को प्रेम समझने वाली अवस्था से हम बहुत परे हैं। किन्तु 'प्रेम अधिकार नहीं है,' यह ज्ञान मुझे तभी होता है जब मैं तुम्हें...

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