आज का शब्द: गोधूलि और आलोक धन्वा की कविता- पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार
' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- गोधूलि , जिसका अर्थ है- संध्या का वह समय जब चरकर लौटनेवाली गौओं के खुरों से धूल उड़ती है। प्रस्तुत है आलोक धन्वा की कविता- पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार प्यार पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार कई बार तो उनमें घुसकर लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते शाम को अपना परदा बनाते हुए अक्सर ही बिना झूठ और बिना चाँद के दूर था अवध का शहर लखनऊ और रेख़्ता से भीगी उसकी दिलकश ज़बान फ़िलहाल कोई एक देश नहीं गोधूलि में पहले तारे...
में इतना कोलाहल था इतनी चाहत थी कि वह जो एक सूना डर सताना शुरू करता है प्रेम के साथ-साथ हम उससे अनजान ही रहे लगभग जैसे शादी ही थी हमारी मंज़िल हमारा ज़रिया आगे के सफ़र का आख़िर शादी की बात पक्की हो गई फिर तो जब भी काम से छुट्टी होती साइकिल पर आगे बिठाकर अपनी होने वाली बेग़म को मैं निकल जाता था दूर शहर के बाहर जाने वाली किसी छायादार सड़क पर साइकिल चलाते हुए आँख चुराते हुए कभी-कभी दोनों एक ही साथ सीटी बजाते हुए किया प्यार घर के लोग भी जल्दी ही सहमत हो गए मेहनत की रोटी खाने वाले हमारे परिवार नहीं...
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