आज का शब्द: रोष और रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- मोहिनी, यह कैसा आह्वान?

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आज का शब्द: रोष और रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- मोहिनी, यह कैसा आह्वान?
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आज का शब्द: रोष और रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- मोहिनी, यह कैसा आह्वान?

' हिंदी हैं हम ' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- रोष , जिसका अर्थ है- कोप , क्रोध , गुस्सा, चित्त का वह उग्र भाव जो कष्ट या हानि पहुँचाने वाले अथवा अनुचित काम करने वाले के प्रति होता है। प्रस्तुत है रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविता- मोहिनी, यह कैसा आह्वान? समय-असमय का तनिक न ध्यान मोहिनी, यह कैसा आह्वान? पहन मुक्ता के युग अवतंस, रत्न-गुंफित खोले कच-जाल, बजाती मधुर चरण-मंजीर, आ गई नभ में रजनी-बाल। झींगुरों में सुन शिंजन-नाद मिलन-आकुलता से द्युतिमान, भेद प्राची का...

सिहरती हरियाली पर डाल! आज वृंतों पर बैठे फूल पहन नूतन, कर्बुर परिधान; विपिन से लेकर सौरभ-भार चला उड़ व्योम-ओर पवमान। किया किसने यह मधुर स्पर्श? विश्व के बदल गए व्यापार। करेगी उतर व्योम से आज कल्पना क्या भू पर अभिसार? नील कुसुमों के वारिद-बीच हरे पट का अवगुंठन डाल; स्वामिनी! वह देखो, है खड़ी पूर्व-परिचित-सी कोई बाल! उमड़ता सुषमाओं को देख आज मेरे दृग में क्यों नीर? लगा किसका शर सहसा आन? जगी अंतर में क्यों यह पीर? न जाने, किसने छूकर मर्म जगा दी छवि-दर्शन की चाह; न जाने, चली हृदय को छोड़ खोजने...

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