आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने देश में सद्भावना की वकालत करते हुए मंदिर-मस्जिद को लेकर नए विवादों पर नाराजगी जताई है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को एक कार्यक्रम में देश में सद्भावना की वकालत की और मंदिर - मस्जिद को लेकर शुरू हुए नए विवाद ों पर नाराजगी जाहिर की है. इस बयान का मतलब सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश में संभल और राजस्थान में अजमेर शरीफ में मंदिर होने के दावे जैसे विवाद के अचानक बढने से लिया जा रहा है. भागवत ने यह भी कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद ऐसे विवाद ों को उठाकर कुछ लोगों को लगता है कि वे 'हिंदुओं के नेता' बन जाएंगे.
कहा जा रहा है कि यह तंज उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर किया है. जो आजकल उत्तर प्रदेश में हिंदू मंदिरों को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिख रहे हैं. हालांकि मोहन भागवत जो कह रहे हैं उससे इनकार नहीं किया जा सकता. यही कारण है कि विपक्ष के कुछ नेताओं ने आगे बढ़कर उनकी बात का समर्थन भी किया है. पर सवाल उठता है कि बीजेपी से कितने लोग उनके समर्थन में आए आए हैं? विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे RSS के अनुषांगिक संगठन क्या भागवत की बात मानेंगे? सवाल यह भी उठता है कि भागवत जो कह रहे हैं उसके लिए वो किस हद तक आगे आ्एंगे? क्योंकि बयान देना अलग बात है , और उस बयान को धरातल पर उतारने के लिए पहल करना अलग बात है. क्योंकि अगर आरएसएस चाह ले तो भारतीय जनता पार्टी का कौन सा शख्स है, जो संघ की इच्छा के विपरीत हिंदुओं का नेता बनने की कोशिश करेगा? पर आरएसएस को जो अच्छी तरह जानते हैं उन्हें पता है कि यह संगठन हमेशा से ऐसी बातें करता रहा है. कोई जरूरी नहीं है कि आरएसएस की इस तरह की हर बात को बीजेपी और अन्य संबंधित संगठन उनकी बात को तवज्जो दें. इसके पहले भी कई बार भागवत ये बात बोल चुके हैं राम मंदिर के बाद हर मस्जिद के नीचे मंदिर नहीं ढूंढना चाहिए. पर उनकी बातों को कितना सुना गया? उदाहरण सामने है कि अगर भागवत की बातों का जरा भी लिहाज होता तो जगह जगह बीजेपी नेता मस्जिदों में मंदिर ढूंढते नजर नहीं आते. दूसरी तरफ भागवत की बातों का कई बार भारतीय जनता पार्टी को खमियाजा भी भुगतना पड़ा है. याद करिए जब 2015 में बिहार विधानसभा चुनावों के पहले आरक्षण पर बोलकर उन्होंने बीजेपी का काम खराब कर दिया था. इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं है कि मोहन भागवत जो कहते हैं वो सही है तो होता है पर चुनौतियां इतनी होती हैं वो आदर्श ही बनकर रह जातीं है
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