बांग्लादेश के नाटकीय घटनाक्रम ने ये सवाल उठाया है कि आर्थिक मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन के बावजूद लोग सरकार से नाराज़ क्यों थे.
बांग्लादेश में उग्र विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के बारे में हाल के वर्षों में जो बयान आए हैं, उन पर एक नज़र डालते हैं.बांग्लादेश ने ग़रीबी को कम करने में टिकाऊ प्रगति की है. सतत आर्थिक विकास से इसमें मदद मिली है...ये तरक्की और विकास की एक प्रेरक कहानी है, जिसमें साल 2031 तक एक उच्च मध्य-आमदनी वाला देश बनने की आकांक्षा है.बांग्लादेश हाल के वर्षों में एशिया की सबसे उल्लेखनीय और अप्रत्याशित सफलता वाली कहानियों में से एक है.
"हां ये सच है कि इस सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में सुनहरे दौर की शुरूआत की है. ग़रीबी उन्मूलन का काम जारी था, निवेश आ रहा था और विकास की दर भी बढ़ रही थी. लेकिन अर्थव्यवस्था के साथ ढांचागत दिक्कतें हैं, जैसे डिफॉल्ट लोन रेट ज्यादा है और टैक्स बेस बहुत कम है." प्रोफेसर रेहान बांग्लादेश के थिंक टैंक साउथ एशियन नेटवर्क ऑन इकॉनोमिक मॉडलिंग में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर भी हैं.
उन्होंने कहा, “बांग्लादेश के विकास की कहानी में खपत की अहम भूमिका थी. देश के कपड़ा उद्योग और विदेशों में रहने वाले अपने नागरिकों की तरफ़ से आने वाले धन से हमें पेमेंट क्राइसिस से बचने में मदद मिली." इससे बांग्लादेश की हालत और नाज़ुक हुई. साल 2022 से जो नीतिगत फ़ैसले लिए गए, वो फॉरेन एक्सचेंज रिज़र्व में गिरावट को रोकने के लिए काफी नहीं थे.
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