इसराइल-लेबनान सीमा पर अक्तूबर 2023 से हिज़्बुल्लाह ने अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ाई हैं. आख़िर हिज़्बुल्लाह वक़्त के साथ कैसे बदलता गया और इसका इरादा क्या है. दुनिया जहान में यही समझने की कोशिश करेंगे.
इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि हिज़्बुल्लाह क्या चाहता है?ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह की दक्षिणी लेबनान में मज़बूत पैठ है. हिज़्बुल्लाह के दो धड़े हैं- सैनिक और राजनीतिक.
एक सवाल बार बार उठ रहा है कि हिज़्बुल्लाह क्या हासिल करना चाहता है? क्या उसके हमलों का मक़सद ग़ज़ा के फ़लस्तीनियों के प्रति समर्थन दिखाना है या वो मध्य पूर्व में इसराइली सेना के कई मोर्चों पर फँसे होने का फ़ायदा उठाना चाहता है?दिनभर: पूरा दिन,पूरी ख़बर 1970 के दशक के आख़िरी सालों में हिज़्बुल्लाह एक सैन्य शक्ति के रूप में उभरने लगा था. उस समय पीएलओ या फ़लस्तीन मुक्ति संगठन के चरमपंथियों ने लेबनान से इसराइल पर रॉकेट हमले करना शुरू किया था.
मगर सवाल था कि इस मिलिशिया को धन कहां से मिलेगा. स्वाभाविक तौर पर उसने ईरान का रुख़ किया जहां इस्लामी क्रांति आ रही थी. इस गुट के उद्देश्य ईरान से मेल भी खाते थे. बाद में इस गुट का नाम बदल कर हिज़्बुल्लाह कर दिया गया. औरेली डहेर का कहना है- इस लिहाज़ से हिज़्बुल्लाह एक राजनीतिक दल कम और एक दबाव डालने वाला लॉबी गुट अधिक है.
लीना बोलीं, “इसराइली सेना के लौटने को हिज़्बुल्लाह अपनी जीत की तरह देख रहा था. इसराइली सेना लेबनान के लगभग सभी हिस्सों से हट गई थी. इस कारण उसके पास इसराइल के ख़िलाफ़ बड़ी सैनिक कार्रवाई करने की कोई वजह नहीं बची थी. इसी कारण 2000 से 2006 तक हिज़्बुल्लाह और इसराइल के बीच कोई बड़ा संघर्ष नहीं हुआ. दोनों की सोच में कोई बदलाव तो नहीं आया था और दूरियां भी बनी रहीं.”
लीना ख़तीब कहती हैं कि शीबा फ़ार्म्स को लेकर विवाद के चलते हिज़्बुल्लाह ने अपना सैनिक वजूद बनाए रखा, मगर इसराइल पर हमला नहीं किया. इसराइल भी हिज़्बुल्लाह की ओर से ख़तरे को नज़रअंदाज़ करता रहा, लेकिन फिर कहानी में नया मोड़ तब आया जब ग़ज़ा को नियंत्रित करने वाले हमास ने इसराइल के दक्षिण में हमला कर दिया.
प्रोफ़ेसर सादी ने कहा, “भूमिगत सुरंगों का आइडिया इन दोनों संगठनों की मिलीभगत से ही संभव हुआ है. इन दोनों के नेतृत्व और उनके चरमपंथियों के बीच किस प्रकार का आदान-प्रदान या सहयोग है, यह कहना मुश्किल है. क्योंकि इन भूमिगत सुरंगों में जो कुछ होता है वह गुप्त ही रहता है. हो सकता है कि हमास के 7 अक्तूबर के हमले की हिज़्बुल्लाह को पूर्व जानकारी ना हो, लेकिन उसे यह ज़रूर पता होगा कि हमास इस प्रकार के हमले के लिए तैयार हो चुका है.
प्रोफ़ेसर के मुताबिक़, “कई मायनों में देखा जाए तो हिज़्बुल्लाह एकमात्र अरब सैन्य संगठन है जो इसराइल पर हमला करने में अपेक्षाकृत काफ़ी सफल रहा है. हिज़्बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह खुलेआम इसराइल को धमकी देते हैं. उनके ड्रोन इसराइली क्षेत्र तक पहुंच जाते हैं. काफ़ी हद तक इसराइली सेना के कमांडर अनमने ही सही, मगर नसरल्लाह की ताकत की दाद भी देते हैं.”मेहरान कामरावा का कहना है, ''हिज़्बुल्लाह एक साथ कई उदेश्य प्राप्त करने की कोशिश करता है.
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