अभी कुछ दिनों पहले तक इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू भारी दबाव में थे, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि ईरान के हमले से उन्हें राहत मिल गई है.
पहली अप्रैल को ग़ज़ा में हुए इसराइली सेना के हमले में वर्ल्ड सेंट्रल किचन के सात सहायता कर्मियों की मौत हो गई थी, इसके बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने सहयोगी देश इसराइल पर धीरज खोते दिखे.
प्रधानमंत्री नेतन्याहू के साथ बातचीत में उन्होंने कई रियायतों की मांग की. ग़ज़ा में मानवीय सहायता को बढ़ाया जाना चाहिए. मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए इसराइल को ज़्यादा सीमाओं को खोलना चाहिए. उत्तरी ग़ज़ा में भूख से मर रहे बच्चों तक सहायता पहुंचाने के लिए अशदोद बंदरगाह को भी खोला जाना चाहिए जो कि वहां से केवल एक घंटे की दूरी पर है.
ईरान के हमले से कुछ घंटे पहले शनिवार की सुबह 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' में गहरी नाराज़गी की बात छपी, ख़ासकर अमेरिकी कांग्रेस के प्रमुख डेमोक्रेट्स के बीच गहराते गुस्से को इस लेख में बताया गया. इन लोगों ने इसराइल में हथियारों की आपूर्ति को रोकने की मांग की थी. इसराइल को सैन्य सहायता देने पर शर्ते लगाने की आवाज़ों की जगह एकजुटता दिखाने की बात ने ले ली. प्रधानमंत्री नेतन्याहू के सामने नए राजनीतिक अवसर बने, कम से कम एक या दो दिन के लिए ही सही ग़ज़ा सुर्ख़ियों से बाहर है.
हालांकि, अमेरिका ने इसराइल को हथियारों की बड़े पैमाने पर आपूर्ति भी की है जिसका इस्तेमाल ग़ज़ा में विनाश के लिए किया गया. जो बाइडन की ही तरह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने लड़ाकू विमान तैनात किए थे और ईरान की निंदा की थी. दोनों ही देशों ने इसराइल से जवाबी हमला नहीं करने का आग्रह भी किया है.
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