इस गणतंत्र दिवस पर हमें अपने संविधान के संदेशों को गहराई से समझनेे की है आवश्यकता RepublicDay MadhavNeerja
राष्ट्र केवल भौगोलिक या राजनीतिक इकाई ही नहीं होता। राष्ट्र सबसे पहले व्यक्ति की चेतना में पैदा होता हैभारत की स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने सैकड़ों वर्षों की बौद्धिक परतंत्रता और दासता को मिटा कर भारतीय राजनीति को एक सर्वप्रिय और वैश्विक स्वरूप प्रदान करने की जो कोशिश की, उसे गणतंत्र दिवस पर गहराई से समझना आवश्यक है। कुछ कम्युनिस्ट विचारकों ने धर्म को मजहब के समानार्थी मानने की भूल करते हुए सनातन धर्म के शाश्वत मानव मूल्यों को संकीर्ण दृष्टि से समझने का जो कार्य किया, उसे मिटाते हुए...
भारतीय संविधान की मूल प्रति में जिन सांकेतिक चित्रों का प्रयोग हुआ है, वे भी भारतीय संस्कृति से ही लिए गए हैं, परंतु दुर्भाग्यवश हमारे इस संविधान का मूल स्वरूप आम लोगों को सहज उपलब्ध नहीं है। संविधान का जो पाठ बाजारों में उपलब्ध है, प्राय: उसमें वे सांकेतिक चित्र नहीं दिए होते। संविधान के जिस भाग में भारतीय नागरिकता का उल्लेख है, उस भाग का प्रारंभ वैदिक काल के गुरुकुल से किया गया है। ऐसा गुरुकुल जहां वैदिक उपनिषदों का पाठ हो रहा है और हवन भी हो रहा है। वैदिक ऋषि द्वारा किया जाने वाला यह हवन ही...
भारतीय राजनीति से जुड़े अधिकांश लोगों में अपनी संस्कृति के तत्वों को लेकर विभ्रम और अनभिज्ञता की स्थिति रही। आज भी अधिकांश लोग भारत के पूरे सांस्कृतिक चरित्र को पश्चिमी चश्मे से देखना चाहते हैं। सबसे अधिक विभ्रम अंग्रेज इतिहासकारों और विचारकों ने फैलाया। उनकी हां में हां मिलाते हुए भारतीयता विरोधी कुछ भारतीय विचारकों एवं लेखकों ने भी उसे फैलाया। इन सबके पीछे एक ही लक्ष्य था-भारत को मानसिक स्तर पर विभाजित रखना। पहले आर्य और द्रविड़ में विभाजन किया। बाद में यह स्थापित करने लग गए कि भारत कभी एक...
भारत की प्राचीन राजनीति का आधार आध्यात्मिक चिंतन है, परंतु उद्देश्य सर्वदा ही मानव मात्र का कल्याण रहा है। संविधान के 'मौलिक अधिकारों' वाले भाग के पहले प्रभु श्रीराम, सीता और लक्ष्मण का चित्र देकर यह संकेत भी दिया गया है कि 'रामराज्य' तभी आ पाएगा, जब नागरिकों को विधि के सामने समानता का अधिकार प्राप्त हो। चाहे वह शिक्षा या अभिव्यक्ति की समानता हो या शोषण, जातीयता, लिंगभेद आदि के विरुद्ध समानता का अधिकार हो। इसी प्रकार संविधान के 'राज्य के नीति निर्देशक तत्व' वाले भाग से...
राष्ट्र केवल एक भौगोलिक या राजनीतिक इकाई ही नहीं होता। राष्ट्र सबसे पहले व्यक्ति की चेतना में पैदा होता है। उस राष्ट्र के प्रति व्यक्ति के भीतर रागात्मक लगाव उसे उत्तराधिकार में प्राप्त होता है। वैसे ही जैसे राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधन, इतिहास, परंपराएं, परिवेश और स्मृतियां हमें सहजता से उत्तराधिकार में प्राप्त होती हैं। हमारा संविधान हमारी उसी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक माना जाना चाहिए। राष्ट्रीय चेतना से जुड़े इन प्रतीकों को रेखांकित करने, सम्मानित करने और साथ ही उनका गौरव गान करने की आवश्यकता...
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