ईरान और अमेरिका पहले दोस्त थे. इनकी दोस्ती का अंत हुआ ईरानी क्रांति से. क्रांति का जो नायक था, उसके दादा भारत के उत्तर प्रदेश से चलकर ईरान गए थे. जब वह क्रांति कर रहा था तो उसे भारतीय मुल्ला और ब्रिटिश एजेंट कहा गया. Iran IranWar
10,169 किलोमीटर. ये दूरी है ईरान की राजधानी तेहरान और अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन के बीच. इन दोनों शहरों के बीच अगर आप फ्लाइट से यात्रा करेंगे तो करीब 14 घंटे में पहुंच पाएंगे. इन दोनों देशों की सीमा ना तो भारत-पाकिस्तान की तरह लगती है और ना ही अब विश्वयुद्ध से पहले कुछ देशों की अपनाई विस्तारवादी नीतियां चल रही हैं. तो फिर इन दोनों देशों के बीच विवाद किस बात का है. यह विवाद मध्यपूर्व को एक और युद्ध की तरफ ले जा सकता है. क्या है इन दोनों देशों के दोस्त से दुश्मन बनने की कहानी, समझते हैं.
आयतोल्लाह रुहोल्लाह खौमेनी इस्लामिक नेता थे. वह शाह के मुखर विरोधी थे. लेकिन असली कहानी शुरू हुई 1963 में, जब मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये एक छह सूत्री कार्यक्रम था. ये सुधार पश्चिम की नीतियों पर आधारित थे. इन सुधारों का विरोध होने लगा. खौमेनी इस विरोध की अगुवाई कर रहे थे. 1964 में शाह ने खौमेनी को देश निकाला दे दिया.शाह पहलवी पश्चिमी नेताओं के साथ कई बार पार्टियां करते थे. ऐसी एक पार्टी को खौमेनी ने शैतानों की पार्टी कहा था.
16 जनवरी 1979 को शाह परिवार समेत ईरान छोड़ अमेरिका चले गए. शाह ने भागने से पहले विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को प्रधानमंत्री बना दिया था. नए प्रधानमंत्री ने खौमेनी को वापस आने की इजाजत दे दी. 12 फरवरी 1979 को खौमेनी फ्रांस से ईरान लौटे. लाखों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. खौमेनी ने बख्तियार सरकार को मानने से इंकार कर दिया और ऐलान किया कि वह सरकार बनाएंगे. 16 फरवरी को उन्होंने मेहदी बाजारगान को नया प्रधानमंत्री घोषित किया. देश में दो प्रधानमंत्री हो गए थे.
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