भारत में ईवीएम कबसे इस्तेमाल होने लगी, यह कहां बनती है, कैसे काम करती है और इसकी क़ीमत क्या होती है. इस तरह के कई सारे सवालों के जवाब.
20 फ़रवरी 2024भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में इसकी अहमियत को इस बात से समझा जा सकता है कि क़रीब दो दशक से हर संसदीय और विधानसभा चुनाव में इन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है.
ये मशीन तीन हिस्सों से बनी होती है. एक होती है कंट्रोल यूनिट , दूसरी बैलेटिंग यूनिट . ये दोनों मशीनें पांच मीटर लंबी एक तार से जुड़ी होती हैं. तीसरा हिस्सा होता है- वीवीपैट. भारत के चुनाव आयोग के मुताबिक़, ईवीएम बहुत ही उपयोगी है और यह पेपर बैलट यानी मतपत्रों की तुलना में सटीक भी होती है, क्योंकि इसमें ग़लत या अस्पष्ट वोट डालने की संभावना ख़त्म हो जाती है.
यह ईवीएम से जोड़ा गया एक ऐसा सिस्टम है, जिससे वोटर यह देख सकते हैं कि उनका वोट सही उम्मीदवार को पड़ा है या नहीं. चुनाव आयोग के अनुसार, इसके लिए दो सरकारी कंपनियां अधिकृत हैं. एक है भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड करती है, जो रक्षा मंत्रालय के तहत आती है और दूसरी कंपनी है इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड जो डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के तहत आती है.
1979 में ईवीएम का एक शुरुआती मॉडल विकसित किया गया, जिसे 6 अगस्त 1980 में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने प्रदर्शित किया.ईवीएम की कंट्रोल यूनिटभारत में चुनावों में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल साल 1982 में हुआ था. केरल विधानसभा की पारूर सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान बैलटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट वाली ईवीएम इस्तेमाल की गई.
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