उत्तराखंड की एक अदालत ने 23 साल पहले एक नाबालिग को हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उसे रिहा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अदालतों ने उस नाबालिग के साथ अन्याय किया।
उत्तराखंड की एक अदालत ने 23 साल पहले एक नाबालिग को हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उसे रिहा कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अदालतों ने उस नाबालिग के साथ अन्याय किया। सबूतों से साफ था कि अपराध के समय उसकी उम्र सिर्फ 14 साल थी, लेकिन अदालतों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और उसकी सजा बरकरार रखी। जस्टिस एमएम सुंदरेश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालतों की गलती की वजह से वो कैदी सजा भुगत रहा था। उसे समाज में वापस आने का मौका नहीं मिला। न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि दोषी ओम प्रकाश उर्फ राजू सजा सुनाए जाने के समय निचली अदालत में अपने नाबालिग होने का दावा किया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केवल यह कहेंगे कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गई गलती के कारण पीड़ित है। हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य है और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है। उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया। उसने जो समय बिना किसी गलती के गंवाया है, उसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया लेकिन साथ ही कहा कि उसकी दोषसिद्धि बरकरार रहेगी। दोषी को हत्या के लिए पहले मौत की सजा सुनाई गई थी और उच्चतम न्यायालय ने भी उसकी सजा बरकरार रखी थी। इसके बाद उसने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की और आठ मई, 2012 को उसे उस समय आंशिक राहत मिली उसके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया।सुप्रीम कोर्ट में उसकी अपील पर वरिष्ठ वकील एस मुरलीधर ने बहस की। उन्होंने बताया कि हर स्तर पर कैदी के साथ अन्याय हुआ, जो निचली अदालत, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से कहता रहा कि अपराध के समय वह नाबालिग था। साल 2001 में निचली अदालत ने उसे दोषी ठहराया और उसकी नाबालिग होने की दलील खारिज कर दी। अदालत ने उसके बैंक चेक बुक और उसके बैंक खाते के आधार पर यह फैसला सुनाया, जिसके मुताबिक अपराध के समय उसकी उम्र 20 साल थी। 2002 में उसकी अपील खारिज होने पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी तथ्य पर जोर दिया
SUPREME COURT DEATH PENALTY MINOR JUSTICE UTTARAKHAND
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