यह लेख करहल सीट पर हुए चुनावों के परिणामों पर केंद्रित है। भाजपा ने यादव मतदाताओं को लुभाने के लिए रणनीति अपनाई थी और मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश सिंह को प्रत्याशी बनाया। यह रणनीति सफल रही, क्योंकि यादव वोट बैंक भाजपा के पाले में चला गया। अखिलेश यादव की जीत का अंतर भी काफी कम रहा।
भाजपा ने खेला था यादव कार्ड अखिलेश यादव के करहल से इस्तीफा देने के बाद सपा ने मुलायम सिंह यादव के पौत्र पूर्व सांसद तेजप्रताप यादव को टिकट दिया था। लगभग एक महीने तक चले मंथन के बाद भाजपा ने यहां रणनीति के तहत यादव कार्ड खेला था। भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के दामाद अनुजेश सिंह को प्रत्याशी बनाया था। भाजपा प्रत्याशी को मिला यादव ों का समर्थन शुरुआत में ये माना जा रहा था कि सपा का कोर वोट बैंक यादव भाजपा के पाले में जाने के लिए तैयार नहीं होगा लेकिन अनुजेश ने जोर लगाया तो उन्हें यादव ों का समर्थन भी
मिला। 23 नवंबर को आए चुनाव परिणाम ने भी ये साफ कर दिया कि यादव वोट बैंक में अनुजेश ने सेंध लगा दी। इसी के चलते 2022 में अखिलेश यादव को 67504 वोटों से मिली जीत तेजप्रताप के लिए महज 14725 वोटों तक ही सिमट कर रह गई। भाजपा भले ही करहल का गढ़ फतह नहीं कर सकी, लेकिन उसकी रणनीति ने करहल जीतने के बाद भी सपा का जश्न फीका कर दिया। न तो पार्टी कार्यालय पर कोई आतिशबाजी या जश्न का माहौल नजर आया और न ही कार्यकर्ताओं में। शांतिपूर्ण ढंग से ही सपा ने लोगों का आभार जताया। प्रशासन पर फोड़ा जीत के कम अंतर का ठीकरा हालांकि सपा के नेता जीत का अंतर कम होने का ठीकरा प्रशासन पर फोड़ते नजर आए। सांसद डिंपल यादव हों, धर्मेंद्र यादव हों या फिर अखिलेश यादव सभी ने प्रशासन द्वारा गड़बड़ी करने के आरोप लगाए। भाजपा को भी मलाल कम नहीं स्थानीय स्तर पर भाजपा और सपा दोनों ही खामोश नजर आ रही हैं। दरअसल सपा का गढ़ कही जाने वाली करहल सीट पर जीत का अंतर इतना कम हो गया है कि इसे अब गढ़ कहना शायद सपा के लिए मुश्किल होगा। वहीं दूसरी तरफ भाजपा भी जीत के करीब तो पहुंच गई, लेकिन जीत हासिल नहीं कर सकी। ऐसे में न तो सपा खुलकर कुछ बोल पा रही है और न ही भाजपा
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