कर्नाटक के नक्सल मुक्ति अभियान की सफलता की कहानी। इसमें नक्सलवाद के इतिहास, पुलिस और सरकार की कोशिशों, नक्सलियों के आत्मसमर्पण और अंत में नक्सल मुक्ति के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
कर्नाटक में नक्सलवाद का इतिहास लगभग पांच दशक पुराना है। 2000 के दशक में कर्नाटक में नक्सलवाद के हिंसक रूप ने अपने पराकाष्ठा को छू लिया। 2005 में कबिनाले के हेब्री में पुलिस जीप में बमबारी का मामला, 2007 में अगुंबे में एक सब-इंस्पेक्टर की हत्या और 2008 में नादपलु में भोज शेट्टी और उनके रिश्तेदार सदाशिव शेट्टी की हत्या जैसे कई हिंसक घटनाएं हुईं। पुलिस की चौकसी और सरकार की माओवाद को खत्म करने की कोशिशों के बावजूद, नक्सल घटनाएं लगातार सिर उठाती रहीं। हालांकि, 2010 में केंद्र सरकार ने कर्नाटक
को नक्सल प्रभावित से आजाद करार दिया, मुख्यतः मलनाड क्षेत्र में कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कर्नाटक में इसका प्रभाव काफी कम रहा।कर्नाटक में अलग-अलग सरकारों के नेतृत्व में नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने की कोशिशें जारी रहीं। इन कोशिशों के चलते 2016 में नौ नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया। इसके ठीक बाद 19 नक्सलियों का एक समूह पड़ोसी राज्य केरल में चला गया। पुलिस ने इनकी खोज की कोशिश जारी रखीं। कर्नाटक लौटने की कोशिश के दौरान सुरक्षाबलों ने नक्सल नेतृत्व के कई चेहरों को मार गिराया गया। केंद्र सरकार भी नक्सलियों के खिलाफ अभियान में तेजी दिखाती रही और 2023 में पश्चिमी घाट जोनल कमेटी के प्रमुख संजय दीपक राव को हैदराबाद से गिरफ्तार कर लिया। दो महीने बाद ही आंध्र प्रदेश की नक्सल कविता उर्फ लक्ष्मी को एनकाउंटर में मार गिराया गया। केरल के माओवादी संगठनों से मदद मिलना बंद होने के कारण कर्नाटक के नक्सल संगठन को नाकामी की वजह से कर्नाटक के नक्सल संगठन को केरल के माओवादी संगठनों से मदद मिलनी बंद हो गई। इस फूट का कर्नाटक के नक्सल-रोधी दस्ते को फायदा मिला। बीते साल नवंबर में कर्नाटक में नक्सलियों के सरगना विक्रम गौड़ा के पश्चिमी घाट से लगे एक क्षेत्र में लौटने की जानकारी मिली। एएनएफ ने यहां जाल बिछाकर विक्रम गौड़ा को मार गिराया। विक्रम पर 100 से ज्यादा केस थे और वह कर्नाटक में नक्सलवाद को बढ़ाने वाला प्रमुख चेहरा था। 2024 में जब केरल भागे आठ नक्सली कर्नाटक लौटे, तो पुलिस, खुफिया एजेंसियों और कर्नाटक के नक्सल-रोधी बल (ANF) का नेटवर्क सक्रिय रहा। इस नेटवर्क ने इन सभी नक्सलियों से आत्मसमर्पण कराने का लक्ष्य रखा। पुलिस को कर्नाटक को नक्सल मुक्त बनाने में सबसे बड़ी सफलता फरवरी 2024 में मिली, जब उसने माओवादी नेता अंगाड़ी सुरेश उर्फ प्रदीप को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया। 49 वर्षीय सुरेश सीपीआई (माओवादी) के पश्चिमी घाट जोनल कमेटी का हिस्सा रहा था। पकड़े जाने के बाद उसने जेल से ही अपनी पत्नी और बागी वंजाक्षी को चिट्ठी लिखी और उससे सरेंडर करने की अपील की। पुलिस ने इस चिट्ठी को पश्चिमी घाट पर स्थित कई गांवों में बांटना शुरू किया। उन्हें उम्मीद थी कि अगर वंजाक्षी को सरेंडर करने पर मजबूर कर लिया गया तो बाकी नक्सलियों को पकड़ना आसान हो जाएगा। आखिरकार 8 जनवरी 2025 को वंजाक्षी और 5 अन्य नक्सलियों ने बंगलूरू में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के दफ्तर के बाहर सरेंडर कर दिया। नक्सलियों के इस बड़े आत्मसमर्पण के बाद कर्नाटक सरकार को सिर्फ कोतेहुंडा रविंद्र की तलाश थी, जिसे कर्नाटक का आखिरी बचा नक्सल करार दिया गया था। अब बीते हफ्ते रविंद्र की गिरफ्तारी के बाद कर्नाटक नक्सल मुक्त करार दे दिया गया है। सरकार ने नक्सलियों को सरेंडर करने के बदले तीन किस्तों में 7.5 लाख रुपये का सहायता पैकेज देने की घोषणा की। हालांकि, उनके सामने अपने ऊपर दर्ज केसों का सामना करने की शर्त रखी गई। राज्य सरकार ने उन्हें कानूनी मदद मुहैया कराने का वादा किया। सरकार की इस योजना के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को एक साल के लिए कौशल विकास ट्रेनिंग और 5000 रुपये की मासिक सहायता देने का भी वादा किया गया। औपचारिक शिक्षा लेने की स्थिति में उनकी यह सहायता दो साल तक जारी रखने का भरोसा दिया गया।
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