कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के अंदरूनी कलह और बढ़ गई है। वरिष्ठ विधायक बी आर पाटिल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के राजनीतिक सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की मांग के बीच आया है और राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है।
बेंगलुरु: कर्नाटक में कांग्रेस के अंदरूनी कलह ने और भी तेज गति धारण कर ली है। वरिष्ठ विधायक बी आर पाटिल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के राजनीति क सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है। यह घटना शनिवार को घटी और राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी। पार्टी के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की मांग के बीच यह इस्तीफा आया है, जिससे अंदरूनी मतभेद और गहरे होते दिख रहे हैं। पाटिल लंबे समय से सिद्धारमैया के वफादार रहे हैं और उन्हें मंत्री पद की उम्मीद थी। लेकिन उन्हें यह पद नहीं मिला और समझौते के तौर पर सलाहकार बनाया गया।
हालांकि, वे पार्टी के कामकाज से नाखुश थे और उन्होंने आखिरकार पद छोड़ने का फैसला किया। \बी आर पाटिल, जो 1983 से विधायक हैं, ने शनिवार को अपने इस्तीफे की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मैंने अपना इस्तीफा सीएम सिद्धारमैया को सौंप दिया है। पाटिल ने आगे कहा कि मैं एक विधायक के रूप में काम करता रहूंगा। मुझे किसी पद की ज़रूरत नहीं है। पाटिल मौजूदा विधानसभा में इकलौते विधायक हैं जो हमेशा गांधी टोपी पहनते हैं। वे अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने पहले भी सरकार के नए शराब लाइसेंस देने के प्रस्ताव का विरोध किया था। वे सरकार की कुछ अन्य नीतियों और फैसलों से भी नाखुश थे। \कांग्रेस के कामकाज से नहीं खुशसूत्रों का कहना है कि वे कांग्रेस की राज्य इकाई के मौजूदा हालात से खुश नहीं थे। हालांकि पाटिल ने अपने इस्तीफे का कोई खास कारण नहीं बताया। उनके इस्तीफे से उन वरिष्ठ विधायकों में फिर से असंतोष पैदा हो गया है, जिन्हें मई 2023 में सिद्धारमैया सरकार बनने के बाद मंत्री पद नहीं दिया गया था। इन नाराज नेताओं को खुश करने के लिए सरकार ने पिछले साल उन्हें विशेष भूमिकाएं दी थीं। बसवराज रायरेड्डी को सीएम का आर्थिक सलाहकार, पाटिल को राजनीतिक सलाहकार और आर वी देशपांडे को प्रशासनिक सुधार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।\पहले कई बार जताई थी नाराजगी सलाहकार पद पर रहते हुए भी, पाटिल ने कई बार पार्टी के कामकाज पर नाराजगी जताई थी। कलाबुरागी के आलंद से विधायक पाटिल ने कांग्रेस के राज्य नेतृत्व को अपनी चिंताओं के बारे में पत्र भी लिखा था। सिद्धारमैया के लंबे समय से वफादार रहे पाटिल को मंत्री पद की उम्मीद थी। लेकिन खबरों के मुताबिक उन्हें कलाबुरागी जिले से प्रियांक और शरणप्रकाश पाटिल के विरोध का सामना करना पड़ा। समझौते के तौर पर उन्हें कैबिनेट रैंक के साथ सीएम का सलाहकार नियुक्त किया गया था। हालांकि, जिला राजनीति और गुटबाजी से निराश होकर, उन्होंने आखिरकार पद छोड़ने का फैसला किया। इस इस्तीफे ने कांग्रेस की अंदरूनी कलह को एक बार फिर सबके सामने ला दिया है। देखना होगा कि पार्टी इस स्थिति से कैसे निपटती है
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