कुंभ-2025 के लिए किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा के साथ रथ-घोड़े, गाजे-बाजे के साथ पहले नगर और फिर छावनी प्रवेश कर गया है। अखाड़े में शामिल करीब एक हजार 'किन्नर संत' पहुंचे हैं। देश-विदेश से इनके आने का सिलसिला जारी है।
गले में सोने के मोटे-मोटे हार, कलाई पर रुद्राक्ष, सोने और हीरे से बने ब्रेसलेट, कानों में कई तोले की ईयर-रिंग, नाक में कंटेंपरेरी नथ, माथे पर त्रिपुंड और लाल बिंदी...
संगम की रेत पर बसे आस्था के महाकुंभ में कैसा है किन्नर संतों का संसार? कुंभ को लेकर इनकी तैयारी क्या है? ऐसे तमाम सवालों के साथ दैनिक भास्कर की टीम किन्नर अखाड़े पहुंची।कुंभ क्षेत्र में हम आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मिलने पहुंचे। तब उनके एक शिष्य ने बताया- आचार्य मेकअप कर रही हैं, टाइम लगेगा। हमने पूछा- कितना समय? जवाब मिला- करीब 3 घंटे।महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी माथे पर त्रिपुंड और लाल बिंदी लगा बैठी थीं। बगल में उनके सहायक अर्जुन खड़े थे। डॉ.
किन्नरों के लिए, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मजहिं सकल त्रिवेणी.. कहा गया है। किन्नरों का बहुत बड़ा स्थान है। उस स्थान को हासिल करने के लिए, उस स्थान पर किन्नरों को स्थापित करने के लिए हमने यह निर्णय लिया कि किन्नर अखाड़े को आगे बढ़ाना होगा। किन्नर अखाड़े के संत बहुत ही हाईटेक होते हैं। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के फेसबुक पर 1 लाख से ज्यादा और इंस्टाग्राम पर 80 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। इसी तरह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्यानंद गिरि, कल्याणी नंद गिरि, मोहनी नंद गिरि के अलावा पवित्रा नंद आदि के लाखों फॉलोअर्स हैं। कुंभ हो या महाकुंभ, सोशल मीडिया पर इनके रील्स भी सबसे ज्यादा वायरल होते हैं।किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ.
लेकिन कुछ लोग, जो ना पुरुष थे ना स्त्री, वहीं जंगल में रुक गए। वे भगवान राम के 14 साल के वनवास के दौरान वहीं रहे। फिर राम की वापसी के साथ ही राज्य में लौटे। इसी प्रसंग के आधार पर इन्हें किन्नर माना जाता है। महाभारत में भी किन्नरों का जिक्र है, जहां उन्हें अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया है। इससे पहले वेदों में भी 3 प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है, जो उनके स्वभाव पर निर्भर करते हैं।मुगलकाल में किन्नर समूह का जिक्र पहले से कहीं ज्यादा विस्तार से मिलता है। कई मुगल लेखकों ने अपनी रचनाओं में...
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