कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला है जो हर 12 वर्ष में चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है. इस लेख में कुंभ मेले के महत्व, प्रकारों और आयोजन के पीछे के खगोलीय कारणों पर प्रकाश डाला गया है.
इस संसार का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और अद्वितीय मेला कुंभ 4 पवित्र स्थानों प्रयागराज , हरिद्वार , उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है. आस्था के इस संगम में जो डुबकी लगाता है, उससे आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने मौका मिलता है. कुंभ मेला 4 प्रकार का होता है- कुंभ, अर्द्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ . समयावधि, धार्मिक महत्व और खगोलीय कारणों के आधार पर इनमें भिन्नता होती है. लोगों के बीच इसे समझने में काफी दुविधा रहती है.
कुंभ मेला हर 12 वर्ष में होता है, जो चारों तीर्थ स्थलों पर बारी-बारी से आयोजित होता है. सूर्य, चंद्रमा और गुरु की विशिष्ट खगोलीय स्थिति से इसका आयोजन होता है. अर्द्धकुंभ मेला हर 6 वर्ष के अंतराल पर हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है. पूर्णकुंभ मेला 12 साल में एक बार केवल प्रयागराज में लगता है. महाकुंभ 144 साल में सिर्फ एक ही बार लगता है, यह भी केवल प्रयागराज में होता है. यह अत्यंत दुर्लभ होता है, जो 12 पूर्णकुंभ के बाद आता है. नए साल 2025 में लगने वाला कुंभ मेला भी पूर्ण कुंभ है. प्रयागराज महाकुंभ तब लगता है, तब गुरु वृषभ में और सूर्य मकर में होते हैं. नासिक महाकुंभ उस समय लगता है, जब गुरु और सूर्य दोनों ही सिंह राशि में होते हैं. नासिक महाकुंभ साल 2027 में लगेगा. हरिद्वार महाकुंभ तब होगा, जब गुरु ग्रह कुंभ में और सूर्य मेष राशि में हों. हरिद्वार महाकुंभ साल 2033 में लगेगा. उज्जैन महाकुंभ उस समय लगेगा, जब सूर्य मेष में और गुरु सिंह राशि में होते हैं. उज्जैन महाकुंभ साल 2028 में लगेगा. हर 12 वर्ष के अंतराल पर महाकुंभ का आयोजन होता है. ज्योतिष के अनुसार, देव गुरु बृहस्पति प्रत्येक राशि में यानी मेष से मीन तक गोचर करने में 12 साल का समय लगाते हैं. इस वजह से ही हर 12 साल पर महाकुंभ का आयोजन होता है. अमृत के लिए देवों और असुरों में 12 दिनों तक युद्ध हुआ था, जो मृत्यु लोक के 12 साल के बराबर होता है. छीना-झपटी के बीच अमृत कलश से कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं, इसलिए इन 4 जगहों पर ही कुंभ का आयोजन है
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