स्वामी चिदानंद सरस्वती द्वारा कुंभ मेला के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि सामाजिक एकता, आध्यात्मिक उन्नति और भारतीय संस्कृति का उत्सव है।
स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमाध्यक्ष, परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश)। कुंभ मेला हमारी गौरवशाली संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो भारतीय समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के प्रत्येक पहलू को संजोए हुए है। यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन या स्नान का पर्व नहीं, बल्कि समाज के सुधार, सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक उन्नति का महत्वपूर्ण मंच है। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की धरोहर है, जो प्रत्येक पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। यह मेला भारतीय संस्कृति और समाज के लिए एक अद्भुत अवसर है, जहां
समस्त समाज के समक्ष कई महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया जाता था। यहां संत-महात्मा और ऋषि-मुनियों का संगम होता है, जो समाज का मार्गदर्शन और व्याप्त समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते थे। सनातन धर्म, ऐसी दिव्य परंपरा है, जो कालांतर से आस्था और मानवता के सर्वोत्तम आदर्शों को संगठित करती आ रही है। सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी हैं कि यह न केवल व्यक्ति को, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी दिशा प्रदान करता है। इसके भीतर निहित प्रत्येक तत्व, परंपरा, उत्सव, पर्व, अनुष्ठान का उद्देश्य जीवन को श्रेष्ठ, पवित्र और दिव्य बनाना है। कुंभ मेला, सनातन धर्म का अभिन्न अंग है। महाकुंभ कुंभ मेला, भारतीय समाज में व्याप्त शुद्धता, समानता, भाईचारा और दिव्यता के संदेश को प्रसारित करता है। प्रत्येक 12 वर्ष में आयोजित होने वाला कुंभ मेला न केवल व्यक्तिगत आस्था, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। यहां सभी धर्म, जाति, वर्ग और समुदायों के लोग एकत्र होते हैं। इस एकता में न केवल सामाजिक समरसता की भावना होती है, बल्कि यहां भारतीय संस्कृति के मूल्यों की भी अभिव्यक्ति होती है। कुंभ मेला वह अवसर है, जिसमें हम तनाव और अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को त्यागकर आत्मशुद्धि के लिए गंगा स्नान करते हैं, ताकि हमारी आत्मा पवित्र हो सके और हम अंतर्मन की गहराई में जाकर आत्म साक्षात्कार करने का प्रयास करें। साथ ही इस मेले में एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान और भाईचारे का भाव जाग्रत होता है। यही है सनातन धर्म का संदेश 'वसुधैव कुटुंबकम अर्थात संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है'। कुंभ मेला भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, क्योंकि यहां प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्वों को आत्मसात कर धर्म के प्रति जागरूक होता ह
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