International Nurses Day: कोरोना वार्ड की देखरेख करने वाली एक नर्स और उनके बेटे की कहानी
कोविड-19 मरीज़ों का इलाज और देखभाल कर रहे डॉक्टरों और नर्सों को किस तरह की इमोशनल चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
हमें यही सब काम अपने वार्ड में करने थे, लेकिन हमने यह महसूस किया कि हमें खुद को अपने परिवारों से दूर रखना है.मेरे बेटे ने अभी ही 10वीं की परीक्षा दी थी और 24 मार्च को उसका जन्मदिन था. मैं कई दिन पहले ही अपने बेटे के जन्मदिन के लिए छुट्टी का आवेदन कर चुकी थी और इसे मनाने के लिए काफ़ी सारी तैयारियां पहले ही की जा चुकी थीं.
तब मेरा मरीज़ों के सीधे संपर्क में आना शुरू हो गया था. मेरे विचार दिमाग में घूम रहे थे. मैं जानती थी कि मैं और मेरी टीम इससे संक्रमित हो सकती है. मेरे वार्ड में पहले मरीज़ के दाख़िल होने के पहले मैंने अपनी टीम को पास बुलाया. उसके बाद वह हर दिन मुझे कॉल करता था. वह पूछता था, 'आप घर पर पहुंच गईं? आपने खाना खा लिया? हॉस्पिटल में क्या हुआ? क्या आप अपना ख्याल रख रही हैं?' हर दिन उससे बात करते वक्त मैं रोने लगती थी और वह मुझे दिलासा देता था. जब मैं वीडियो-कॉल करती थी, वह कहता था, 'देखो, मैं अच्छा हूं और मैं बिलकुल फ़िट हूं.' फिर मैं हंसने लगती थी.
क्वारंटीन की अवधि के पूरे होने के बाद मुझे एक टेस्ट कराना पड़ा. यह टेस्ट नेगेटिव आया. मुझे घर जाने की इजाजत मिल गई. मैं आपको बता नहीं सकती कि टेस्ट के रिजल्ट के नेगेटिव आने से मैं कितनी खुश थी. मेरे अंदर थोड़ा साहस आ गया था कि 14 दिन तक कोविड मरीज़ों के साथ रहने के बावजूद मैं इस संक्रमण से बच गई हूं.अपने पति को कुछ भी बताए बगैर मैं सीधी अपनी मां के घर पहुंच गई. मेरा बेटा मुझे अलग लग रहा था क्योंकि मैं उससे एक महीने बाद मिल रही थी. वह बड़ा लग रहा था.
लेकिन, अचानक से देशभर में 14 अप्रैल तक के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया. मैं इस फैसले से ज्यादा खुश नहीं था. मैं इस महामारी की गंभीरता को समझ नहीं पाया था.मेरे पापा एक जर्नलिस्ट हैं और मेरी मां मुंबई के एक बड़े अस्पताल में एक नर्स हैं. दोनों लोग आवश्यक सेवाओं वाले क्षेत्र में काम करते हैं. ऐसे में दोनों के लिए लॉकडाउन की अवधि में भी काम पर जाना था.दूसरी ओर, मेरी मां को एक ऐसी टीम में शामिल किया गया था जो कि कोरोना मरीज़ों की देखरेख करने के लिए बनाई गई थी.
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