संक्रमण मामलों की कुल संख्या के अनुसार अब दिल्ली, महाराष्ट्र के बाद दूसरे नंबर पर है. मौतों के मामले में भी दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात के बाद तीसरे नबंर पर है.
सफ़दरजंग अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख और कोविड-19 नोडल अधिकारी डॉक्टर जुगल किशोर का कहना है कि अभी स्वास्थ्य तंत्र के बिखरने की हालत आ गई हो, ऐसा नहीं है.
उन्होंने कहा, “सरकार को ये बात समझनी चाहिए कि अगर सिर्फ़ गंभीर रूप से बीमार लोगों का टेस्ट होगा तो मृत्यु दर भी ज़्यादा दर्ज होगा. अगर बिना लक्षणों वाले और कम लक्षणों वाले लोगों का टेस्ट होगा तो वो ठीक होंगे और इससे इलाज के बाद ठीक हुए लोगों की संख्या बढ़ेगी. इससे आम लोगों का डर कम होगा.”डॉक्टर जुगल कहते हैं कि टेस्टिंग में कमी की वजह से डॉक्टरों के पास सही आंकड़े और जानकारियां नहीं आ पातीं.
पब्लिक हेल्थ रिसर्चर इनायत सिंह कक्कड़ का मानना है कि स्वास्थ जैसे बुनियादी मुद्दों को आधार बनाकर चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी सरकार अब स्वास्थ्य व्यवस्था संभालने में ही फिसड्डी साबित होती दिख रही है. उन्होंने कहा, “हमने टेस्टिंग बंद नहीं की है, बल्कि कम की है. हमने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी बंद नहीं की है. हम बस इतना चाहते हैं कि अगर किसी में कोविड-19 के लक्षण नहीं है या हल्के लक्षण हैं तो उसे होम क्वारंटीन किया जाए, न कि अस्पताल में भर्ती.”
उन्होंने कहा, “लैब्स को सैंपल प्रोसेस करने और उसकी जांच करने में भी वक़्त लगता है. ज़्यादा लोगों की टेस्टिंग से उन पर दबाव बढ़ता है और नतीजे आने में भी देरी होती है. ऐसे में गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति टेस्ट रिज़ल्ट के इंतज़ार में परेशान होता रहता है.”कुछ दिनों पहले दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट करके केंद्र सरकार से 5,000 करोड़ रुपये की मदद मांगी थी.
आर्थिक मामलों के जानकार आलोक जोशी का इस बारे में मानना है कि दिल्ली सरकार के रेवेन्यू कम होने और विज्ञापनों पर बेहतहाशा खर्च, दोनों बातों में दम है.
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