global recession दुनिया में एक बार फिर से मंदी की आहट सुनाई दे रही है। अमेरिका से इसकी शुरुआत देखने को मिल रही है। इसकी आशंका इस बात से जताई जा रही है कि अमेरिका ने बीते शुक्रवार को बाजार बंद होने के बाद नौकरियों के आंकड़े जारी किए। इसके मुताबिक देश में जुलाई में लोगों को उम्मीद के मुताबिक नौकरियां नहीं मिलीं और बेरोजगारी दर तीन साल के उच्चतम स्तर...
नई दिल्ली: 1929 की गर्मियों के दिन थे, जब अमेरिका में मंदी की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी। जुलाई आते-आते यह संकट और गहरा गया। इसका असर उस वक्त बाजारों दिखता, जब लोग आते और बिना कुछ खरीदे ही चले जाते। यह ट्रेंड इतना बढ़ा कि बाजारों में हर चीज का ढेर लग गया। फैक्ट्रियां बंद होने लग गईं। जबकि शेयर मार्केट इन सबसे बेपरवाह भागने लग गया था। फिर आखिर 24 अक्टूबर, 1929 को अमेरिका में इन सब बातों से परेशान निवेशकों ने जरूरत से ज्यादा बढ़े शेयरों को धड़ाधड़ बेचना शुरू कर दिया। शाम होते-होते रिकॉर्ड 1.
5 करोड़ लोगों बेरोजगार हो गए। पूरे अमेरिका में निराशा का माहौल था। किंतु, राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर पूंजीवादी अमेरिकी व्यवस्था के ‘उन्मुक्त आर्थिक जीवन ’ में सरकारी दखल के बिल्कुल खिलाफ थे। वह किसी भी तरह की शानो-शौकत में कमी नहीं लाना चाहते थे।रूजवेल्ट की न्यू डील से संभला अमेरिका, पर जंग में फंसाऐसे में जब 1932 में अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव हुआ, तब लाखों बेरोजगारों, आर्थिक तंगी से परेशान शहरी निम्न मध्य वर्ग के लोग और गरीब किसानों ने डेमोक्रेट उम्मीदवार फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के पक्ष में भारी...
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