क्या चीन में काम कर रहीं कंपनियों को देश में लाने में सफल होगा भारत?

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क्या चीन में काम कर रहीं कंपनियों को देश में लाने में सफल होगा भारत? India GlobalMarket Multinationals China भारत अंतरराष्ट्रीयबाजार बहुराष्ट्रीयकंपनियां चीन

अजीब विरोधाभास है, पीएम नरेंद्र मोदी देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं. स्वदेशी की सीढ़ी चढ़ाना चाहते हैं, लेकिन उनकी सरकार ने चीन में काम कर रही उन अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों परहैं, जो वहां से अपनी फैक्ट्रियां हटाकर भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, कंबोडिया, बांग्लादेश, फिलीपींस और ताइवान ले जाना चाहती हैं.

इस जमीन पर इलेक्ट्रिकल, फार्मास्यूटिकल्स, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल और टेक्सटाइल समेत दस सेक्टर की मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को फैक्ट्रियां लगाने की इजाजत दी जाएगी. एक तरह से यह सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ 2.0 होगा.जिन कंपनियों ने अपनी सारी सप्लाई चेन चीन में केंद्रित कर रखा है, उनके लिए कोविड-19 जैसी महामारी बड़ा जोखिम है. इनमें से कई अपना मैन्युफैक्चरिंग बेस दुनिया के दूसरे देशों में शिफ्ट कर इसे कम करना चाह रही हैं.

पिछले दिनों आईएलएंडएफएस कांड से लेकर टेलीकॉम कंपनियों के एजीआर विवाद तक, बिजनेस की संभावनाओं को झटके देने वाले तमाम मामले सामने आए, जिससे लगा कि भारत में निवेश करना अपनी मुसीबतों में और इजाफा करना है. मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर उभरने की चाहत रखने वाले देश के पास काफी तेज कनेक्टिविटी होनी चाहिए. मसलन चीन में बेहद आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर है. छह लेन की सड़कों और तेज क्लीयरेंस वाले बंदरगाहों की वजह से चीन से निर्यात करना बेहद आसान है. चीन में बने इलेक्ट्रोनिक्स सामान और पुर्जों को कई दफा 20 से 30 बार प्रांतों के बॉर्डर पार करने पड़ते हैं. लिहाजा गति काफी मायने रखती है.

चीन बड़े से लेकर छोटे मैन्युफैक्चरर्स के लिए इंटिग्रेटेड सेवा मुहैया कराता है यानी सप्लाई चेन से जुड़े सभी लिंक को एक साथ जोड़कर दी जाने वाली सुविधा. चीन में एक ही उत्पाद को बेहतर डिजाइन और कम लागत के साथ बनाने के लिए सौ से ज्यादा कॉन्ट्रेक्ट मैन्युफैक्चरर्स सामने आ सकते हैं.

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