बैंगलोर में आईटी प्रोफ़ेशनल अतुल सुभाष की मौत के बाद मेन्स राइट एक्टिविस्ट एक्टिव हैं. उन्हें लगता है शादीशुदा मर्दों की हर परेशानी की जड़ है IPC की धारा 498A. कई पुरुष कह रहे हैं कि घरेलू हिंसा, दहेज से जुड़े मामलों में ज्यादातर महिलाएं झूठे केस ही कराती हैं. क्या ये पूरा मामला Men vs Women का है?
#MenToo, #Mensright, मर्द का दर्द, राष्ट्रीय महिला आयोग की तरह राष्ट्रीय पुरुष आयोग बने, Pseudo feministsये सारे शब्द... सोशल मीडिया से लेकर गली-मुहल्ले, टीवी डिबेट पर सुनने को मिल रहे हैं. दरअसल, बैंगलोर में काम करने वाले आईटी प्रोफ़ेशनल अतुल सुभाष की मौत के बाद मेन्स राइट एक्टिविस्ट एक्टिव हैं. उन्हें लगता है शादीशुदा मर्दों की हर परेशानी की जड़ है IPC की धारा 498A. कई पुरुष कह रहे हैं कि घरेलू हिंसा (domestic violence), दहेज से जुड़े मामलों में ज्यादातर महिलाएं झूठे केस ही कराती हैं.
Delhi Crime: DCW हेल्पलाइन पर एक साल में 6 लाख+ कॉल्स,सबसे अधिक घरेलू हिंसा के केसलेकिन सवाल है कि क्या सच में ऐसा है? क्या ये पूरा मामला Men vs Women का है? आज हम इसी की पड़ताल करेंगे... और बताएंगे कि ये 498ए क्या है जिसने महिलाओं को 'एक्स्ट्रा पावर' दे रखा है? कानून की नजर में दहेज भी अपराध है तो फिर क्या भारत में दहेज के बाजार में दूल्हा ऑन सेल बंद हो गया? और सबसे अहम सवाल असल जिम्मेदार कौन है जिसकी चर्चा नहीं हो रही.स्टोरी आगे पढ़ने से पहले आपसे एक अपील... पुरुष, महिलाएं, ट्रांसजेंडर, अल्पसंख्यक बहुसंख्यक, आदिवासी, दलित, बच्चे-बूढ़े, शहर-गांव हर जरूरी मुद्दों पर क्विंट हिंदी आपकी आवाज बनने की कोशिश करता है, और आगे भी आपकी आवाज सुनी जाए इसके लिए आपको हमारे साथ आना होगा... क्विंट के मेंबर बनकर.बिहार के रहने वाले अतुल सुभाष ने मरने से पहले 24 पन्ने का सुसाइड नोट लिखा और एक घंटे 21 मिनट का वीडियो बनाया, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी से लेकर सुसराल वालों और फैमिली कोर्ट की जज पर बड़े आरोप लगाए. नोट में अतुल ने बताया कि पत्नी निकिता और उसके परिवार वालों ने उनपर घरेलू हिंसा, हत्या की कोशिश, दहेज प्रताड़ना समेत 9 केस दर्ज करवा दिए थे. अतुल कई महीनों से अपने बच्चे से नहीं मिले थे. अतुल ने मेंटल कंडीशन, सुस्त न्यायपालिका सब का जिक्र किया है. साथ ही दहेज और शादी टूटने पर गुजारा भत्ता, ऐलिमनि, बच्चे की कस्टडी पर भी बात की है.अतुल ने जिन मुद्दों की तरफ फोकस किया है वो सब अहम हैं, लेकिन क्या सालों की लड़ाई के बाद घरेलू हिंसा, तलाक, दहेज की वजह से हो रही हत्याओं से लड़ने के लिए बने कानूनों को मेन vs वुमेन कहकर रद्द कर देना चाहिए? चलिए आपको कुछ आंकड़े दिखाता हू
MEN's RIGHTS WOMEN's RIGHTS DOMESTIC VIOLENCE IPC SECTION 498A DIVORCE DAHEJ
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