यह लेख खरगोन जिले के कुछ प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिरों के बारे में है, जिनमें महालक्ष्मी माता मंदिर, जयंती माता मंदिर, नवग्रह मंदिर, आशापुरी माता मंदिर और विंध्यवासिनी स्वाहा मंदिर शामिल हैं.
महालक्ष्मी माता मंदिर : देवी श्री महालक्ष्मी माता का यह मंदिर अति प्राचीन है. देश के चार सबसे पुरातन महालक्ष्मी मंदिर ों में से एक है. मान्यता है की देवी की यह प्रतिमा स्वयंभू होकर दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. देवी का यह मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से 18 km दूर ऊन गांव में मौजूद है. जयंती माता मंदिर : जयंती माता का यह मंदिर पांडव कालीन है. विंध्याचल पर्वत के घने जंगल में चोरल नदी के किनारे एक गुफा में माता विराजित है.
किंवदंती है कि पांडव और कौरव के बीच हुए युद्ध में युधिष्ठिर को जयंती माता ने ही विजय का वरदान दिया था. सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. यह मंदिर खरगोन जिला मुख्यालय से लगभग 70 km दूर बड़वाह से 4 km दूर मौजूद है. नवग्रह मंदिर: 300 साल पुराना खरगोन का श्री नवग्रह मंदिर देश का इकलौता सूर्य प्रधान नवग्रह मंदिर है, जो ज्योतिषशास्त्र के पूर्ण पैरामीटर और गणित ज्ञान को ध्यान में रखकर बनाया गया है. इस मंदिर में नौ ग्रहों की अधिष्ठात्री मां बगलामुखी के स्थापित होने से पीताम्बरी ग्रह शांति पीठ भी कहलाता है. यहां ब्रह्मास्त्र एवं श्री सूर्यचक्र के रूप में ब्रह्माण्ड की दो महाशक्तियां भी यहां स्थापित है. मंदिर जिला मुख्यालय पर कुंडा नदी के तट पर मौजूद है. आशापुरी माता मंदिर: आशापुरी माता का यह मंदिर आशापुर गांव में बना है. जिसका इतिहास पांडव कालीन बताया जाता है. किंवदंती है कि पांडव पुत्र अर्जुन ने और मांडव के राजा आल्हा ऊदल ने तपस्या कर माता को प्रसन्न किया था. राजा मांधाता की यह कुलदेवी हैं. पृथ्वीराज सिंह चौहान सहित मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के 28 गोत्र के लोग माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं. यह मंदिर जिला मुख्यालय से 72 km दूर महेश्वर तहसील में है. विंध्यवासिनी स्वाहा: खरगोन के महेश्वर में स्थित विंध्यवासिनी स्वाहा महेश्वरी देवी का चमत्कारी मंदिर है. इसे मां भगवती के 108 शक्तिपीठों में भी गिना जाता है. क्षेत्र में भवानी माता के नाम से यह प्रसिद्ध है. माता का स्वाह अंग यहां गिरने से यह स्वाहा शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हुई हैं. तीन फीट ऊंची मां भवानी की प्रतिमा काले पाषाण के पत्थर से निर्मित होकर काले शेर पर सवार है. 16 हाथ यानी नौ मीटर की साड़ी माता को लगती है
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