नेपाल में गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल पर आयोजित होने वाले मेले में लाखों जानवरों की बलि दी जाती है। इस मेले को दुनिया का सबसे खूनी त्योहार माना जाता है और इसका नाम 'गीनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी है। लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहाँ जानवरों की बलि देकर गढ़ी माई से आशीर्वाद मांगते हैं।
यह स्थान काठमांडू से 160 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. नवंबर-दिसंबर में यहां हर पांच साल पर मेला लगता है, जो एक महीने तक चलता है. भारी संख्या में जानवरों को मारकर बलि के रूप चढ़ाए जाने के कारण इसे दुनिया का सबसे खूनी त्योहार कहा गया है. सामूहिक बलि देने के मामले में इस मेले का नाम 'गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स' में भी दर्ज है. यहां सबसे पहले वाराणसी के डोम राजा के यहां से आने वाले पशुओं की बलि दी जाती है.
आज से लगभग 265 साल पहले वर्ष 1759 में पहली बार यह त्योहार मनाया गया था. किंवदंती के अनुसार, गढ़ी माई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को एक रात सपना आया. उस समय वे काठमांडू की जेल में बंद थे. सपने में गढ़ी माई ने उन्हें जेल से छुड़ाने, सुख व समृद्धि तथा रोग से बचाने के लिए इंसान की बलि मांगी. सावधानी बरतते हुए भगवान चौधरी ने इंसान की बजाय जानवर की बलि दी. तभी से गढ़ीमाई मंदिर में हर पांच साल बाद लाखों जानवरों की बलि चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है.
वहीं, 2019 में इस प्रथा पर रोक लगाने के मामले में नेपाल की कोर्ट ने कहा कि इस पर तुरंत रोक नहीं लगाया जा सकता है. इसे धीरे-धीरे कम किया जाए. साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि यह धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है. इसलिए इससे जुड़े लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत नहीं किया जा सकता है. इससे पहले भी नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश जारी किया, उस पर अमल नहीं किया गया.
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