सऊदी अरब और इसराइल के बीच रिश्तों को सामान्य करने की अमेरिका लगातार कोशिशें कर रहा है, लेकिन अब चुनौतियां पहले के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा बढ़ गई हैं. बीते साल 7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले और ग़ज़ा में इसराइल की जवाबी कार्रवाई ने बातचीत की संभावनाओं को लगभग ख़त्म कर दिया है.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमानग़ज़ा में युद्ध शुरू होने से पहले मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए मज़बूती से बात हो रही थी.
हालांकि हाल के महीनों में अमेरिका और सऊदी अरब के राजनयिकों ने शांति समझौते की बात फिर से शुरू की है. सवाल है कि क्या ऐसा होने की कोई संभावना है?अमेरिका: कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी में फ़लस्तीन और इसराइल समर्थकों के बीच हिंसक झड़पसऊदी अरब ने नियोम प्रॉजेक्ट के लिए 'जान से मारने का आदेश' क्यों दिया? इसके बाद क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के नेतृत्व में सऊदी अपने उन महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की तरफ़ लौटता, जिन पर वह भविष्य की सोच आगे रखकर काम कर रहा है. साथ ही वे अपने देश को पर्यटन का केंद्र बनाने की तरफ़ ध्यान देते.
अमेरिका भी फ़लस्तीनी राष्ट्र को समझौते के केंद्र में रखता है. युद्ध के बाद ग़ज़ा का भविष्य शांति बहाल करने के लिए अरब देशों की भागीदारी और इसराइल के साथ संबंधों पर निर्भर करता है. वहीं दूसरी तरफ ग़ज़ा में युद्ध जारी है. अमेरिका के बार-बार मना करने के बावजूद इसराइल, रफ़ाह में एक नया ज़मीनी हमला करने की बात कर रहा है, जिसके चलते उसने वहां रहने वाले क़रीब एक लाख लोगों को अपनी जगह छोड़ने का आदेश दिया है. इसके बाद संघर्ष विराम की संभावना पहले से कहीं अधिक मुश्किल हो गई है.
इसराइल का कहना है कि वह रफ़ाह में सीमित हमला कर रहा है. अमेरिका ने पहले इस बात पर ज़ोर दिया था कि रफ़ाह पर किया गया बड़ा सैन्य हमला बातचीत की संभावना को ख़त्म कर देगा.सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ब्लूमबर्ग ने सूत्रों का हवाला देते हुए मई की शुरुआत में लिखा था कि नेतन्याहू की मज़बूत स्थिति के कारण सऊदी अरब और अमेरिका ‘प्लान बी’ लेकर आए थे.
क्राउन प्रिंस, भविष्य के सऊदी अरब का निर्माण कर रहे हैं. वे किसी भी संघर्ष से दूर रहना चाहते हैं फिर वह चाहे धार्मिक हो, नस्लीय संघर्ष या फिर देशों के बीच हो. हालांकि सर्वे में शामिल आधे से ज़्यादा लोगों ने अगले पांच सालों के अंदर अमेरिका और चीन के बीच सैन्य टकराव की आशंका जताई है. इसके एवज़ में सऊदी अरब को अमेरिका से ये वादा करना है कि वो चाइनीज़ टेक्नोलॉजी की सीमित ख़रीदारी करेगा. सऊदी न्यूक्लियर प्रोग्राम को विकसित करने में मदद के एवज़ में अमेरिका को वहां संवर्धित होने वाले यूरेनियम तक पहुंच हासिल होगी.
"इसराइल को किनारे रखकर सऊदी अरब और अमेरिका के बीच हुए किसी रक्षा समझौते को सीनेट में 67 वोट नहीं मिलेंगे." अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक चैटम हाउस, द रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटरनेशनल अफ़ेयर्स के विशेषज्ञ बिलाल साब लिखते हैं, "जब भी फ़लस्तीनी राज्य के गठन की बात आती है, बिन्यामिन नेतन्याहू शायद ही कभी ये जताने से चूकते हैं कि वो इसके ख़िलाफ़ हैं. नेतन्याहू का पूरा ध्यान इस जंग को जारी रखकर अपने सियासी वजूद को बचाए रखने पर है."
वे कहते हैं कि इसके लिए बाइडन प्रशासन की तीन चरणों वाली योजना में एक पॉइंट और जोड़ा जा सकता है. इसमें इसराइल हमास के बीच समझौता, युद्ध की समाप्ति, बंधकों की रिहाई और सऊदी अरब और इसराइल के बीच संबंधों को सामान्य करने के सब मुद्दे आ जाएंगे.
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