गीतानंद महाराज की सवा लाख रुद्राक्ष की हठयोग तपस्या

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गीतानंद महाराज की सवा लाख रुद्राक्ष की हठयोग तपस्या
गीतानंद महाराजरुद्राक्षतपस्या
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गीतानंद महाराज, अपने सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण करके चलने वाले संन्यासी, ने अपनी जीवन की कहानी और महाकुंभ में अपनी हठयोग तपस्या के बारे में बताया।

दो साल की उम्र में माता-पिता ने गुरु महाराज को सौंप दिया। गीतानंद महाराज ने अपनी कहानी बताई। महाराज अपने सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं, जिनका वजन 45 किलो है। उनकी यह हठयोग तपस्या महाकुंभ मेले में आकर्षण का केंद्र बन गई।\गीतानंद जन्म 1987 में पंजाब के कोट का पुरवा गांव में हुआ था। माता-पिता को 5 साल तक कोई संतान नहीं हुई। गांव में श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के संन्यासी आते थे। परिवार गुरुओं की कथा सुनने जाता था। परिवार ने एक बाबा को अपना गुरु बना लिया, उनसे दीक्षा ली। एक साल बाद

गीतानंद के माता-पिता को पहली संतान हुई। इसके बाद दूसरी संतान के रूप में गीतानंद का जन्म हुआ। गीतानंद के जन्म के 2 साल बाद एक और बच्चे का जन्म हुआ। गुरु ने आशीर्वाद देते हुए माता-पिता से कहा था कि एक संतान तुम्हें हमें देनी होगी। अपने वचन को याद रखते हुए माता-पिता ने ढाई साल के गीतानंद को अपने गुरु को दे दिया। गुरु को देते वक्त उन्हें पीड़ा थी, लेकिन इस बात का संतोष भी था कि उनके पास दो और संतानें हैं।\गीतानंद बताते हैं- गुरुजी घर से हमें लेकर चले आए। मुझे किसी चीज की कोई जानकारी नहीं थी। संस्कृत स्कूल से पढ़ाई शुरू हुई। सबको पूजा-पाठ करते देखता, तो उसी में मन लगता। 12-13 साल का हुआ तो हरिद्वार में मेरा संन्यास कार्यक्रम हुआ और मैं संन्यासी बन गया। हालांकि उसके बाद भी पढ़ाई जारी रही। 10वीं तक की पढ़ाई के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया। गीतानंद श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े के नागा संन्यासी हैं, लेकिन वह नागा 12 साल की उम्र में नहीं बने। उस वक्त वह संन्यासी बने। जब 18 साल की उम्र पूरी हुई, तब नागा बनने से जुड़ा धार्मिक कार्यक्रम करना पड़ा। जब कोई संत नागा बनता है तब उसे सबसे पहले अपने परिवार के लोगों का श्राद्ध करना होता है, फिर अपना श्राद्ध। इसके बाद तपस्या शुरू होती है। इसके बाद एक गुरु विशेष अंग की नस खींच देते हैं। यहीं से संत नागा संन्यासी हो जाते हैं।\गीतानंद अपने सिर पर रुद्राक्ष धारण करके चलते हैं। हमने पूछा कि यह कितने हैं और इनका वजन कितना होगा? वह इसके पीछे की कहानी बताते हैं। कहते हैं- सवा लाख रुद्राक्ष धारण करने का संकल्प था। हमारे जो भक्त हैं वह देते गए। अब ये सवा दो लाख रुद्राक्ष हो गए हैं। इनका वजन 45 किलो हो गया है। हर दिन 12 घंटे इसे सिर पर रखते हैं। सुबह 5 बजे स्नान करने के बाद इस मुकुट को पूरे विधि-विधान से सिर पर रख लिया जाता है। शाम को 5 बजे मंत्रोच्चारण के साथ इसे नीचे रखा जाता है। गीतानंद ने इस हठयोग तपस्या को प्रयागराज में 2019 के अर्धकुंभ में शुरू किया था। 12 साल की तपस्या है, जिसके 6 साल पूरे हो गए हैं। अगले 6 साल तक वह ऐसे ही सिर पर 45 किलो रुद्राक्ष रखे रहेंगे। हमने पूछा कि क्या इसके बाद भी कोई तपस्या करने की सोच रखी है? वह कहते हैं- यह मेरी आखिरी तपस्या है। सब प्रभु की कृपा से होता है

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गीतानंद महाराज रुद्राक्ष तपस्या महाकुंभ संन्यासी

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