गो सेवा का अटल पालन: महानिर्वाणी अखाड़ा

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गो सेवा का अटल पालन: महानिर्वाणी अखाड़ा
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श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के संतों को गो सेवा का अटूट पालन करना अनिवार्य है। गोशाला का संचालन बंद करने या गायों की सेवा न करने पर अखाड़ा उन्हें निष्कासित करता है।

जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। बात वर्ष 2007 की है। श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के संत रामेश्वर पुरी ने गोशाला का संचालन बंद कर दिया। इसकी सूचना अखाड़े के पंचों को हुई तो उन्हें निष्कासित कर दिया गया। महंत राजेश्वर गिरि ने अखाड़े के निर्देश के खिलाफ गोसेवा के लिए गोशाला नहीं बनवायी। इससे वे 2008 में निष्कासित कर दिए गए। गोशाला में असहाय गाय ों की सेवा न करने पर नासिक के स्वामी अमर गिरि 2009 में अखाड़े से निकाल दिए गए। ऐसे तमाम उदाहरण है जब संत ों ने गो सेवा के निर्देश का पूरी तरह पालन नहीं किया

तो महानिर्वाणी अखाड़ा ने उन्हें बाहर कर दिया। सनातन का मर्म गाय और गंगा में निहित है। इह लोक और परलोक को सुधारने के लिए दोनों की सेवा जरूरी है। श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा इसी सूत्र पर अपने संतों को आगे बढ़ा रहा है। दर्शन जीवों पर दया करो। इसके मूल में गो वंश है। यहां के संत अपनी ऊर्जा का स्रोत गो वंश से ही प्राप्त करते हैं। इसकी शुरुआत सेवा से होती है फिर उनकी पूजा के साथ उनके गोबर से बने कंडे भोजन पकाने का जरिया बनते हैं। तीर्थराज प्रयाग में भ्रमण पर निकले श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत यमुना पुरी व अन्य। जागरण आर्काइव इसे भी पढ़ें-अखाड़ों का संसार: 'अटल' सिद्धांतों का अटल अखाड़ा, जहां नहीं है कोई महामंडलेश्वर प्रत्येक संत सनातन धर्म की रक्षा के साथ गो सेवा को समर्पित है। महामंडलेश्वरों के लिए गोशाला बनाना अनिवार्य है। बूढ़ी गायों की सेवा विशेष रूप से करने का निर्देश है। कोई संत गाय का तिरस्कार करता है अथवा दूध न देने पर उन्हें बाहर निकालता है तो उसे अक्षम्य अपराध माना जाता है। ऐसा करने वाले संतों को पदमुक्त कर दिया जाता है। सामाजिक दायित्व के रूप में इस अखाड़े ने मतांतरण रोकने का संकल्प लिया है। तमाम संत समाज के बीच जाकर सत्संग व संस्कार की लौ प्रज्वलित कर रहे हैं। इस दृष्टि से राष्ट्र निर्माण का दायित्व भी यह अखाड़ा पूरा कर रहा है। महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना स्थापना झारखंड के हजारीबाग जिले के गढ़कुंठा बैजनाथ धाम (सिद्धेश्वर महादेव मंदिर) में विक्रम संवत 805 ईस्वी में हुई। रूप गिरि सिद्ध, उत्तम गिरि सिद्ध, रामस्वरूप सिद्ध, शंकर पुरी मौनी, भवानीपुरी, देववन मौनी, ओंकार भारती तथा पूर्णानंद भारती जैसे तपस्वी संतों ने अखाड़े की नींव रखी। ये आवाहन और अटल अ

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