भारत आम की उपज और किस्मों के मामले में नंबर वन ज़रूर है लेकिन आम के बारे भारत के लोग बहुत सारी बातें नहीं जानते
EPA/NADEEM KHAWAR
अलफांसो संभवतः सबसे महँगा आम है और इसका बहुत बड़ा हिस्सा भारत से निर्यात हो जाता है जिसकी यूरोपीय बाज़ार में काफ़ी माँग रहती है. कुछ लोग हैं जिनके ऊपर आमों के बारे बातें करने का, उनके बारे में जानने का जुनून होता है. ऐसे लोग लखनऊ के पास मलिहाबाद के हाजी कलीमुल्लाह खान साहब के बारे में ज़रूर जानते होंगे जो हर साल आम की दो-चार नई किस्में पेश कर देते हैं. वैसे खुद उनके ही बागान में 300 से ज्यादा किस्मों के आम होते हैं.
वैसे भी बहुत कम आम हैं जो पूरे देश में मिलते हैं, हर आम एक ख़ास दायरे में मिलता है, मिसाल के तौर पर कर्नाटक का बादामी या तमिलनाडु का मलगोबा दिल्ली में मिलना मुश्किल है लेकिन लंबी शेल्फ़ लाइफ़ की वजह से आंध्र प्रदेश के सफ़ेदा, बेगमपल्ली और तोतापरी पूरे देश में बिकते दिख जाते हैं. आम के पूरे बाजार पर सबसे ज्यादा बोलबाला भी इन्हीं आमों का होता है. कुछ लोग 15 जून से जुलाई के अंत को आम का मुख्य मौसम मानते हैं, वैसे सावन के खात्मे के साथ-साथ आमों का भी खात्मा हो जाता है. सबसे आखिर में जब मानसून लगभग पूरे देश को भिगोना शुरू कर चुका होता है तब बाजार में वे आम आते हैं जो जायके और मिठास में सबसे बढ़कर होते हैं.
मलिहाबाद लखनऊ जिले का ही एक कस्बा है जो बताता है कि छोटे से भूगोल में ही आम कितनी सारी किस्में बनती और निखरती रही हैं. ऐसे बहुत सारे आम हैं जो अपनी कम शेल्फ लाइफ के कारण अपनी बहुत बड़ी पहचान नहीं बना सके और अब स्थानीय स्तर पर भी भुलाए जा रहे हैं. आम की जड़े भारत की जमीन में ही नहीं उसकी उसकी संस्कृति में भी काफी गहराई तक हैं. भारतीय गांवों में आम की अमराई का अपना ही महत्व है तो बहुत सारे यज्ञ और पूजा में आम के पत्ते सबसे महत्वपूर्ण सामग्री होते हैं. कुछ देवों का निवास ही आम के नीचे माना जाता है. भारतीय जब दुनिया भर में फेले तो वे अपने साथ आम भले ही न ले जा सके हों, आम की संस्कृति अपने साथ जरूर ले गए.
एक बार आम जब लोगों के किस्सों और उनकी लोकोकत्तियों में पहुँचा तो जल्द ही उनके खेतों में भी पहुँच गया. अब चीन के कईं इलाकों में आम की उपज होती है. भारत भले ही आम का सबसे बड़ा उत्पादक देश हो लेकिन दूसरे नंबर पर अब चीन ही है.
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