Maharashtra Assembly Election 2024; Eknath Shinde Shiv Sena Politics Explained. Follow Shinde Vs Uddhav Thackeray Dispute, impact On Upcoming Chunav On Dainik Bhaskar. शिवसेना के खांटी नेता एकनाथ शिंदे की बगावत और महाराष्ट्र की राजनीति में उसका असर
तारीख 20 जून 2022, मुंबई का सीएम हाउस ‘वर्षा’। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना के तमाम बड़े नेताओं और विधायकों के साथ मीटिंग कर रहे थे। उनके पीछे करीब एक कुर्सी दूर उनके ओएसडी के मोबाइल पर एक बीप आती है।इधर, मीटिंग में जैसे ही उद्धव अपनी बात खत्म करते हैं, ओएसडी कुर्सी से उठ वो चिट उनके सामने रख देते हैं। उद्धव ने चिट देखने के बाद डस्टबिन में डाल दी। बॉस का रिएक्शन देख ओएसडी बिना कुछ कहे अपनी जगह जाकर बैठ जाते...
महाराष्ट्र के सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब ‘सबसे बड़ी बगावत’ में इस किस्से का जिक्र किया है। ‘महाराष्ट्र के महाकांड’ सीरीज के 5वें एपिसोड में ‘शिवसेना के खांटी नेता एकनाथ शिंदे की बगावत और महाराष्ट्र की राजनीति में उसका असर जानने मैं मुंबई पहुंची हूं…. नवंबर 2019 में देवेंद्र फडणवीस दोबारा मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन 80 घंटे बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। फिर महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई। तब से ही महाराष्ट्र सरकार और बीजेपी के बीच शह और मात का खेल शुरू हो गया।नवंबर 2019 में एकनाथ शिंदे लगातार चौथी बार मुंबई के ठाणे से विधायक बने। वे तीस साल से शिवसेना से जुड़े थे। जब तय हुआ कि महाविकास अघाड़ी में CM शिवसेना का होगा, तो शिंदे और उनके करीबियों को लगा कि CM की कुर्सी उनकी...
‘सबसे बड़ी बगावत’ किताब के मुताबिक, 'पार्टी के लोग उद्धव से मिलने के लिए तरसते थे। उद्धव ने अपना एक इनर सर्कल बना रखा था। वे सिर्फ अपने लोगों से ही मिलते थे। पहले तो वो किसी से मिलते ही नहीं थे और मिलते भी तो घंटों इंतजार करना पड़ता था।' 22 जून 2022 की सुबह से ही गुवाहाटी की आबोहवा गरम थी। फाइव स्टार होटल रैडिसन पर सबकी निगाहें थीं क्योंकि यहां देश की सियासत का सबसे बड़ा ड्रामा चल रहा था। होटल को सील कर दिया गया था। दरअसल, देर रात यहां एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के विधायकों के साथ पहुंचे थे।
जितेंद्र दीक्षित बताते हैं, 'शिवसेना में यह चौथी सबसे बड़ी बगावत थी। इससे पहले 1991 में छगन भुजबल ने बगावत की थी। पार्टी में छगन भुजबल का कद तेजी से बढ़ा। वह तेज दिमाग थे और भाषण अच्छा देते थे। ओबीसी समुदाय पर उनकी अच्छी पकड़ थी। उनकी कोशिशों से महाराष्ट्र में शिवसेना का विस्तार भी अच्छा हुआ। 'हालांकि बाल ठाकरे को राणे अभी भी प्रिय थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के सामने राणे की एक नहीं चलती थी। राणे ने अपनी आत्मकथा ‘नो होल्डस बार्ड’ में लिखा है कि उनकी वजह से बालासाहेब और उद्धव के बीच अक्सर झगड़े होते थे। एक बार उद्धव ने बालासाहेब को धमकी दे डाली कि राणे पार्टी में रहेंगे, तो वह अपने परिवार के साथ मातोश्री छोड़ देंगे।2005 में ही शिवसेना में एक और फूट पड़ी। इस बार बालासाहेब के चहेते और परिवार के ही एक सदस्य राज ठाकरे ने बगावत कर दी। दिसंबर 2005 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी बना...
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