राजस्थान में अलवर ज़िले के रहने वाले 21 साल के जितेंद्र सिंह तंवर जान गंवाने वाले राजस्थान के पहले अग्निवीर हैं.
जम्मू कश्मीर में मारे गए अग्निवीर जितेंद्र सिंह की मां का दर्द, 'अग्निपथ' पर सवाल और अब तक कितनी मिली मदद- ग्राउंड रिपोर्ट"सरकार की ओर से मुझे कुछ नहीं मिला, मेरे बेटे के शव के अलावा कुछ नहीं आया मेरे पास. दो महीने बीत जाने के बाद भी उसका सामान और मोबाइल फ़ोन तक अभी नहीं आया."भारतीय संसद में अग्निवीर के मुद्दे पर राहुल गांधी के सवाल और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के जवाब के बाद हमने इस परिवार के पास पहुंच कर उनका हाल जानने की कोशिश की है.
अलवर ज़िले के मालाखेड़ा तहसील के नवलपुरा गांव के रहने वाले 21 साल के जितेंद्र सिंह तंवर जान गंवाने वाले राजस्थान के पहले अग्निवीर हैं. जितेंद्र के ताऊ के बेटे हेमंत बीबीसी से कहते हैं, ''अब तीन दिन से ही कई लोगों के फोन आ रहे हैं. अग्निवीर का मुद्दा चल रहा है यह उसका ही प्रभाव है कि अब फ़ोन आ रहे हैं."
"मुद्दा हाईलाइट होने के बाद से ही लोगों ने संपर्क बढ़ाया है, पहले से किसी ने संपर्क नहीं किया. राजनीतिक मुद्दा बनने के बाद काम होना ग़लत है. एक शहीद को सही तरह से सम्मान मिलना चाहिए." वे जितेंद्र के घर पर बीबीसी से बात करते हुए कहते हैं, "चार तारीख़ को मेरे पास रक्षा मंत्रालय से फोन आया था कि आज शाम या कल तक परिवार के खाते में 48 लाख रुपए जमा किए जाएंगे."
वे कहते हैं, "जो सामान्य सैनिक पहले सेवा में गया है वो भी अपनी ड्यूटी कर रहा है और जो अग्निवीर गया है वह भी अपनी ड्यूटी कर रहा है. पहले वाले भी शहीद होते हैं और अब वाले भी शहीद हो रहे हैं, फिर सैनिकों के बीच भेदभाव क्यों." टीकाराम जूली बीबीसी से कहते हैं, "सरकार की मदद के लिए 14 मई को ही मैंने राज्य की भाजपा सरकार को पत्र लिखा था. लेकिन, उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई."
विज्ञापन के मुताबिक़ अग्निवीर भर्ती होने के बाद अग्निवीर पैकेज के तहत निर्धारित सालाना इनक्रिमेंट, रिस्क और हार्डशिप अलाउंस भी देय होगा. "यदि बैटल कैजुअल्टी होगा तो राजस्थान सरकार की ओर से इनके परिवार को पचास लाख रुपए का पैकेज है. इसमें 25 बीघा ज़मीन या एमआईजी हाउसिंग बोर्ड का मकान या टोटल पचास लाख कैश और परिवार को एक नौकरी."
परिवार के पास करीब डेढ़ बीघा ज़मीन है, जिस पर इतनी खेती नहीं होती कि परिवार का खर्च चलाया जा सके. घर में भी दैनिक जीवन से जुड़े सामान के अलावा कुछ नहीं है. ''वह कुछ समय बाद जयपुर से स्पेशल ट्रेनिंग के लिए आगरा चले गए थे जिसके बाद जयपुर आने पर घर भी आए थे और फिर जयपुर से उनकी तैनाती जम्मू कश्मीर की गई."
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