जयपुर सेंट्रल जेल में कैदियों को कई बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, उच्च-सुरक्षा सेल में शौचालय का उपयोग करना असहनीय है क्योंकि वहां हवा और वेंटिलेशन की सुविधा नहीं है। कैदियों ने जेल अधिकारियों, ट्रायल कोर्ट और राजस्थान उच्च न्यायालय तक शिकायतें उठाई हैं, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है।
जयपुर सेंट्रल जेल की उच्च-सुरक्षा सेल में रिज़वान* बहुत सोच-विचार कर कमरे के अंदर बने शौचालय इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि यहां न तो हवा पास होने की सुविधा है और न ही गंध को दूर करने के लिए एग्जॉस्ट पंखे की कोई व्यवस्था. रिजवान बीते तीन सालों से यहां हैं और जब कभी एक बार भी शौचालय का उपयोग करते हैं, तो कमरे में घंटों तक बदबू बनी रहती है.
सितंबर 2024 में राज्य जेल विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इसे 1,173 कैदियों के लिए डिज़ाइन किया गया था, लेकिन यहां निर्धारित संख्या से अधिक- 1,818 कैदी रह रहे थे. हिंदी में हाथ से लिखे अपने पत्र में वे बताते हैं कि उनके भोजन में दीवारों से प्लास्टर का छूटकर गिरना एक रोजमर्रा की बात हो चली है. जेलों में सामना की जाने वाली एक और आम समस्या कैदियों को उनकी नियमित सुनवाई के लिए अदालत तक ले जाने के लिए एस्कॉर्ट पुलिस की कमी है. ये अदालती दौरे, कारावास में बंद लोगों को कुछ ताजी हवा देने के साथ-साथ कैदियों को अपने परिवार के सदस्यों से अधिक स्वतंत्र रूप से मिलने की अनुमति भी देते हैं. लेकिन यहांं के अधिकांश कैदियों को केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं के माध्यम से ट्रायल कोर्ट के समक्ष ‘पेश’ किया जाता है.
वकील दीक्षा द्विवेदी, जो कभी जयपुर जेल में बंद एक मुवक्किल का प्रतिनिधित्व करती थीं और बाद में अजमेर चली गईं, ने पत्रों में किए गए दावों की पुष्टि की है. एक युवा कैदी ने द वायर को लिखे अपने पत्र में बताया कि कैसे उसकी बैरक में 100 से अधिक लोग बंद हैं. उन्होंने बताया कि उस कमरे में सिर्फ एक सीलिंग पंखा है. वह शिकायत करते हैं, ‘इस बंद जगह में सांस लेने के लिए भी हवा नहीं है.’
द वायर ने एक विस्तृत प्रश्नावली के साथ जेल अधीक्षक राकेश मोहन शर्मा से संपर्क किया था. कैदियों द्वारा लगाए गए कई आरोपों के जवाब में शर्मा ने कहा कि वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने मोटे तौर पर जेल में बंद लोगों के ‘रवैये’ के बारे में बात की.
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