राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास की जल समाधि से नदी दूषित होने का दावा किए जा रहे हैं, इस पर प्रोफेसर सविता झा ने जवाब दिया.
Delhi News : हाल ही में एक मामला काफी चर्चा में है जिस पर लोग खासकर पर्यावरण के प्रति जागरूक लोग सवाल उठा रहे हैं. मामला है राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास के निधन के बाद सरयू नदी में जल समाधि देने का. इसके बाद से कुछ लोगों का कहना है कि जल समाधि से नदी दूषित होती है. इसी हकीकत को समझने के लिए हमने दिल्ली यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर और नदियों से लेकर पर्यावरण पर लंबे समय तक रिसर्च करने वाली प्रोफेसर सविता झा से बात की.
प्रोफेसर झा ने बताया कि भारत एक आस्थावान देश है जहां तमाम धर्म हैं और हर धर्म की अपनी परंपरा और आस्था है. इसी तरह हमारे देश में आश्रम की परंपरा है जहां साधु-संत संन्यास धारण करते हैं और अग्नि का त्याग कर देते हैं. अग्नि त्याग करने के बाद उन्हें जल समाधि दी जाती है क्योंकि अग्नि त्याग करने वाले का दाह संस्कार संभव नहीं है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इस विधि विधान का पीछे का कारण नदी को पवित्र और मोक्षदायिनी माना जाता है. प्रोफेसर झा ने आगे बताया कि जो लोग जल समाधि पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें यह जानना चाहिए कि मनुष्य का शरीर बायोडिग्रेडेबल होता है. जब इसे नदी में बहाया जाता है तो यह डीकंपोज हो जाता है और लंबे समय तक नदी में नहीं रहता. इसके अलावा, जलचर जीव-जंतु भी शव को खा जाते हैं. नदी को सबसे पवित्र माना जाता है और साधु-संतों, सन्यासियों की परंपरा के लिए यह एक रीति-रिवाज है. नदी पर इसका कोई भी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता. यद्यपि आज युवा पीढ़ी और कम जानकार लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है, इसलिए वे सवाल उठा रहे हैं. प्रोफेसर झा ने कहा कि एक सन्यासी की जल समाधि लेने के बाद सवाल उठाने के बजाय हमें नदियों में गिरने वाले केमिकल को रोकने आदि चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए
Jala Samadhi Pollution Narmada River Sadhus Sannyasis Environment Professor Savita Jha Delhi University
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