सपा की ओबीसी पर निर्भरता तीन कारणों से भ्रामक है। एक मोदी अब ओबीसी नेता के रूप में स्थापित हो गए हैं। इसकी अनदेखी नहीं हो सकती कि भाजपा ने मोहन यादव मध्य प्रदेश नायब सिंह सैनी हरियाणा भूपेंद्र पटेल गुजरात आदि ओबीसी मुख्यमंत्रियों को प्राथमिकता दी है। दूसरा सपा ओबीसी केंद्रित होने का दावा करती है मगर उसकी छवि मुख्यतः यादवों को प्रमुखता देने वाली...
डा. एके वर्मा। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के साथ देश की निगाह उत्तर प्रदेश में होने वाले नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव पर भी है। पिछले लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित बढ़त से उत्साहित विपक्ष जाति जनगणना पर बल देने के साथ संविधान और आरक्षण ‘बचाने’ पर भी जोर देने में लगा हुआ है। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव उपचुनावों में पीडीए सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपनी सफलता दोहराना चाहते हैं। सपा का जनाधार 2019 लोकसभा में 17.96 से बढ़कर 2022 विधानसभा चुनावों में 32.06 और 2024 लोकसभा में 33.
59 प्रतिशत वोट और 37 लोकसभा सीटें मिलीं, पर इसका असली श्रेय उस झूठे विमर्श को जाता है, जिसे अखिलेश-राहुल ने दलितों और ओबीसी के सामने रखा कि भाजपा का अबकी बार चार सौ पार का नारा बाबासाहेब के संविधान को ध्वस्त करने और आरक्षण खत्म करने के उद्देश्य से है। इसका असर पड़ा। इसलिए और भी, क्योंकि भाजपा ने इस विमर्श को हल्के में लिया। अखिलेश का पीडीए प्रयोग संविधान और आरक्षण विमर्श के अभाव में संभवतः सफल नहीं होता, क्योंकि सामाजिक संरचना में तर-ऊपर होने से दलितों और पिछड़ों के सामाजिक संबंध तनावपूर्ण हैं।...
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