राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ कुछ मामलों में ऊंची आर्थिक वृद्धि के अनुकूल नहीं रह गई है। विरोधी को मात देने की लिए ऐसी लुभावनी घोषणाओं का दौर चल निकला है जिसके चलते कुछ राज्य दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गए हैं। सामाजिक न्याय रेवड़ियां बांटकर नहीं बल्कि आर्थिक रूप से सशक्त बनने पर ही संभव...
जीएन वाजपेयी। अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य में भी भारतीय अर्थव्यवस्था तेज गति से वृद्धि कर रही है। इस समय वृद्धि की जो रफ्तार है, उसके आधार पर भारत 2030 तक सात ट्रिलियन डालर की आर्थिकी बनकर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वृहद आर्थिक स्थायित्व, युवा आबादी, गतिशील एवं जीवंत लोकतंत्र और तटस्थ भू-राजनीतिक दृष्टिकोण जैसे पहलुओं के चलते भारत विदेशी निवेशकों के लिए निवेश के पसंदीदा ठिकाने के रूप में उभरा है। इसके बावजूद निरंतर तेज वृद्धि के लिए भूमि, श्रम और कृषि के मोर्चे पर तत्काल...
9 प्रतिशत रही। रोजगार की दर राज्य की अर्थव्यवस्था की सेहत को दर्शाती है। अधिक संपन्न राज्य में यह दर काफी ऊंची है। ऐसी विषमता बड़े पैमाने पर आंतरिक पलायन और सामाजिक व्यग्रता बढ़ाने के साथ ही राष्ट्रीय चिंता को बढ़ाती है। विषमता की यह स्थिति एकाएक नहीं बनी। इसके पीछे तत्कालीन सरकारों का वह रवैया मुख्य रूप से जिम्मेदार है कि उन्होंने उद्यमियों का भरोसा जीतने का प्रयास नहीं किया। शासन की गुणवत्ता, राजनीतिक अस्थिरता और कुछ मामलों में कानून एवं व्यवस्था की लचर स्थिति सबसे बड़े कारक रहे। राज्य को...
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