जागरण संपादकीय: पक्षपाती अल्पसंख्यकवाद के दुष्परिणाम, बदलनी होगी अवधारणा

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जागरण संपादकीय: पक्षपाती अल्पसंख्यकवाद के दुष्परिणाम, बदलनी होगी अवधारणा
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ब्रिटिश राज में पंथ और संस्कृति के क्षेत्र में कोई शासकीय दखल नहीं था। सभी समुदाय अपनी रुचि की शिक्षा लेने संस्थान बनाने रीति-रिवाज और त्योहार आदि अपनी परंपरा से मनाने के लिए मुक्त थे। स्वतंत्र भारत के संविधान ने ही दो प्रकार के नागरिक बनाए अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक। अल्पसंख्यकों को दोहरे अधिकार मिल गए-एक नागरिक के रूप में दूसरे अल्पसंख्यक के...

शंकर शरण। देश में रह-रहकर ऐसे प्रसंग घटते रहते हैं, जो हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर विचार करने को बाध्य करते हैं, जैसे हाल में कांवड़ यात्रियों के मार्ग में दुकानदारों के नाम लिखने का आदेश। हिंदू-मुस्लिम संबंधों के प्रति स्वतंत्र भारत की नीति किस तरह दोहरापन लिए रही है, इसका ही उदाहरण है कांवड़ यात्रियों की भोजन भावना पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला। हमारे न्यायालय अन्य समुदाय के लिए हलाल भोजन शर्तों को उचित समझते हैं, बल्कि दूसरों पर थोपने की भी अनदेखी होती है, पर वही न्यायालय हिंदुओं के सात्विक भोजन...

वही अर्थ लेता है, जो ईसाइयत और इस्लाम की मान्यताओं के अनुरूप है। रिलीजन और धर्म समानार्थी नहीं, यह संविधान निर्माता भी जानते थे। इसीलिए बाद में जोड़े गए सेक्युलरिज्म को भी हिंदी में आधिकारिक रूप से पंथनिरपेक्षता कहा गया, न कि धर्मनिरपेक्षता। हिंदू परंपरा में धर्म पर चलना और उसकी रक्षा करना रहा है। उसे कोई फेथ मानना और दूसरों से येन-केन वही मनवाना, सबको अपने घेरे में लाना, यह सब हिंदू धर्म के लिए विजातीय है, लेकिन संविधान में हिंदुओं को अपने धर्म की रक्षा करने का अधिकार नहीं दिया गया। इस...

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