धार्मिक मान्यता के अनुसार, ज्योतिर्लिंग शिव के विभिन्न रूपों का प्रतीक हैं और उनके दर्शन करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन इससे पहले भक्तों को अपने शरीर और मन को शुद्ध करना जरूरी होता है. पैरों में रंग लगाना इसी शुद्धिकरण प्रक्रिया का एक हिस्सा माना जाता है.
अभिषेक जायसवाल /वाराणसी: ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से पहले पैरों में रंग लगाने की प्रथा सदियों पुरानी है. इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय बताते हैं कि पैरों में रंग लगाने की यह प्रथा हिंदू धर्म में विशेष रूप से पुण्य प्राप्ति से जुड़ी हुई है. इसका सीधा कनेक्शन सौभाग्य वृद्धि से भी जुड़ा हुआ है. यह रंग अक्सर हल्दी, कुमकुम या चंदन का मिश्रण होता है जो पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक होता है.
यह क्रिया भक्त को यह स्मरण कराती है कि वह धरती पर एक साधारण प्राणी है और उसे अपने अहंकार को त्याग कर भगवान शिव की शरण में जाना चाहिए. रंग का स्पर्श भक्त को भगवान के प्रति उसकी समर्पण भावना को भी गहरा करता है, जिससे उसे मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होता है. क्या है पुण्य का कनेक्शन? पैरों में रंग लगाने का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह भक्त के द्वारा किया गया एक साधारण सा कर्म है, जिसे धर्म शास्त्रों में पुण्य का कार्य माना गया है.
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