इस लेख में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा का विश्लेषण किया गया है, जो भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। केजरीवाल की दिल्ली में सत्ता हासिल करने की कहानी, उनके नीतियों का प्रभाव, और उनके द्वारा किए गए आरोपों का प्रभाव को रेखांकित किया गया है।
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली। 14 साल पहले रामलीला मैदान में भारत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आंदोलन के साथ आगे आने वाले अरविंद केजरीवाल की दिल्ली चुनाव में हुई दुर्गति से हर कोई अचंभित है। भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने वाले केजरीवाल स्वयं पर लगे दाग को मिटा नहीं सके। नतीजतन, दिल्ली में सत्ता चली गई। स्वयं भी बुरी तरह चुनाव हार गए। अमूल्य पार्टी को इस बार केवल 22 सीटें मिली हैं, वहीं भाजपा को 48 पर जीत मिली है। भ्रष्टाचार के खिलाफ 2011 में खड़े हुए अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल प्रमुख रूप से दिखते
थे, लेकिन वो खुद अब भ्रष्टाचार में घिर गए। 2013 में लड़ा था पहला चुनाव आय आर एस अधिकारी रहे केजरीवाल पार्टी के गठन के एक साल बाद ही 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में उतरे। आम आदमी पार्टी ने पहला चुनाव लड़ा। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में आप दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इसे 28 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और दिल्ली में आप की सरकार बन गई। दिल्ली में पहली बार सरकार बनाकर मुख्यमंत्री बनने पर केजरीवाल को 49 दिन में इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस के साथ न जाने की कसम, लेकिन मिलाया हाथ हालांकि, उन्होंने उस समय जिस कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, इससे पहले उसके साथ न जाने की कसम भी खाई थी, इसे लेकर विपक्ष उन्हें निशाना बनाता रहा है। केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने 400 सीटों पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा। केजरीवाल वाराणसी में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़े। चुनाव हार गए। आप के हाथ कुछ नहीं लगा। दिल्ली में भी एक भी सीट नहीं मिली। उनकी पार्टी सिर्फ पंजाब में चार सीटों पर जीत दर्ज कर सकी। आप ने 2015 के विधानसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल की। 70 में से 67 सीटें मिलीं, लेकिन इस बीच पार्टी में अंतर्कलह सामने आने लगी। कई बड़े नेताओं ने छोड़ी पार्टी अप्रैल 2015 में आप के संस्थापक सदस्यों योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और प्रो. आनंद कुमार को निष्कासित कर दिया गया। बड़े नेताओं में अंतिम बार 2018 में पार्टी छोड़ने वालों में आशीष खेतान रहे हैं। कुछ समय पहले ही आशुतोष ने भी आप छोड़ दी थी। कुमार विश्वास भी आप से दूरी बना चुके हैं। पार्टी ने 2020 में भी 70 में से 62 सीटें जीत कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। शीश महल पर घिरे केजरीवाल मगर केजरीवाल भ्रष्टाचार को लेकर विवादों में तब आ गए थे जब 2022 में उनके बंगले को शीश महल का नाम देकर इसके पुनर्निमाण में अनियमितताएं बरते जाने का भाजपा ने उन पर आरोप जड़ा। आरोप लगने पर एलजी वीके सक्सेना द्वारा कराई गई जांच में यह बात सामने आई कि नियमों को नजरअंदाज कर सीएम हाउस में पुनर्निमाण कराया गया और विलासिता की सुविधाएं जुटाईं गई। केजरीवाल इन आरोपों से निपट भी नहीं पाए थे कि आबकारी घोटाले ने उनका दामन पकड़ लिया। 11 मार्च 2022 को आए जिस गोवा विधानसभा के चुनाव परिणाम में आप को दो सीटें मिलीं थीं, उसी चुनाव में आबकारी घोटाले के 100 करोड़ रुपये खपाने का आरोप उन पर है। जांच एजेंसियों ने अदालत के सामने कहा कि यह पैसा आबकारी घोटाले से एकत्र किया गया था। आबकारी घोटाला मामले में ईडी की ओर से सीधे उनका नाम लिया जाने लगा। नोटिस पर नोटिस मिले इसके बाद पेशी का नोटिस भेजे जाने का सिलसिला शुरू हुआ तो एक के बाद एक नौ नोटिस भेजे गए। केजरीवाल जांच एजेंसियों के सामने पेश नहीं हुए तो मार्च 2024 में मुख्यमंत्री रहते हुए उनके आवास से उन्हें गिरफ्तार किया गया। वह करीब पांच महीने जेल में रहे। इससे पहले उनकी पार्टी के सहयोगी नेता संजय सिंह और उस समय के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के फरवरी 2023 में जेल जा चुके थे। संजय सिंह की चार माह बाद जमानत हो गई थी। सिसोदिया 17 महीने बाद जेल से बाहर आए। इसके बाद पांच महीने जेल में रहने के बाद केजरीवाल जेल से बाहर आ गए और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया। मगर भ्रष्टाचार के छींटे उन पर ऐसे पड़े जिन्होंने आज तक पीछा नहीं छूटा। उन्हें दिल्ली की सत्ता तक गंवानी पड़ी
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