दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों में AAP के लिए चुनौती बढ़ रही है। कांग्रेस और BJP दोनों ही AAP को मुख्य चुनौती दे रही हैं।
दिल्ली की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव करीब हैं। बेशक दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, पर सत्ता के लिए बिछती बिसात बताती है कि उसकी राजनीति अहमियत किसी अन्य राज्य से कम नहीं। चुनाव की घोषणा के वक्त से ही साफ हो गया था कि इस बार मुकाबला वाकई त्रिकोणीय होगा। एक दशक से दिल्ली में सत्तारूढ़ AAP को पहली बार कड़ी चुनौती मिलने के आसार हैं।\ AAP का दबदबामोदी लहर में भी AAP न सिर्फ दिल्ली का दुर्ग बचाने में सफल रही,बल्कि कांग्रेस से पंजाब भी छीन लिया और राष्ट्रीय दल का दर्जा भी हासिल कर लिया। उसके दबदबे
का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1998 से 2013 तक दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने वाली कांग्रेस का दो बार से विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला तो लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने वाली BJP बमुश्किल तीन से आठ सीटों तक पहुंच पाई। फिर भी 2025 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं तो उसके कारण हैं।\कांग्रेस से मोहभंग AAP का जन्म जन लोकपाल की मांग को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के चर्चित आंदोलन के बाद हुआ । AAP और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल की छवि स्वाभाविक ही वैकल्पिक राजनीति के अगुआ और श्रीमान ईमानदार की बन गई। तब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस से जनता का तेजी से मोह भंग हो रहा था। ऐसे में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहे गरीब, दलित और अल्पसंख्यक AAP कीओर मुड़ गए।\लोकप्रिय लीडर केजरीवाल आज भी दिल्ली के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रम उनकी साख पर सवालिया निशान लगाए हैं।उनकी सबसे बड़ी ताकत ईमानदार नेता की छवि रही है, जिस पर इधर विरोधियों की तरफ से संगीन आरोप लगे हैं। इनमें शीशमहलनुमा आवास और शराब नीति घोटाले शामिल हैं। शराब नीति घोटाले में केजरीवाल समेत AAP के कुछ प्रमुख नेताओं को जेल जाना पड़ा। अधूरे वायदे AAP इसे केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग और राजनीतिक उत्पीड़न का मामला बताती है। यमुना सफाई समेत कुछ वायदे अधूरे हैं। शायद इसलिए भी मतदाताओं को लुभाने के लिए संजीवनी और महिला सम्मान योजना की जरूरत पड़ रही है, लेकिन ऐसी रेवड़ियां बांटने में अब पीछे कौन है ?\पुराने दांव-पेच नाकाफी इसलिए इस बार पुराने दांव-पेच ज्यादा काम नहीं आएंगे। बेशक मुफ्त पानी, बिजली, मोहल्ला क्लीनिक और बेहतर सरकारी स्कूल जैसे काम हैं गिनाने के लिए, लेकिन इनमें से ज्यादातर तो पहले कार्यकाल में हो गए थे। दूसरे कार्यकाल में क्या हुआ ? इस बीच कुछ बड़े नेता भी AAP T दामन छोड़ गए। पिछले तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटें जीतने वाली BJP लगातार AAP सरकार के विरुद्ध आक्रामक बनी हुई है। AAP के कुछ बड़े नेताओं को तोड़ने में भी वह सफल रही है। हमलावर कांग्रेस ' AAP के लिए इस चुनाव को ज्यादा मुश्किल बना दिया है। लोकसभा चुनाव तक दोस्त रही कांग्रेस इस बार केजरीवाल के विरुद्ध BJP से भी ज्यादा आक्रामक दिख रही है। जिस शराब नीति घोटाले ने AAP को बड़े संकट में डाला, उसकी शिकायत कांग्रेस ने ही की थी। हाल ही में महिला सम्मान योजना में फर्जीवाड़े की आशंका की शिकायत लेकर भी कांग्रेस के संदीप दीक्षित ही नए उपराज्यपाल के पास पहुंचे। उन्होंने यह म भी कहा है कि पंजाब पुलिस कांग्रेस , उम्मीदवारों की जासूसी कर रही है और दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब न से कैश लाया जा रहा है। इन शिकायतों पर जांच के आदेश भी हो गए।\दोहरी घेराबंदी कांग्रेस और BJP, दोनों AAP के प्रमुख नेताओं की चुनावी घेराबंदी करने में जुटी हैं। केजरीवाल के विरुद्ध BJP ने भी अपने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे और पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। केजरीवाल सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के विरुद्ध जंगपुरा से कांग्रेस ने पूर्व मेयर फरहाद सूरी को तो BJP ने सिख नेता तरविंदर सिंह मारवाह को उम्मीदवार बनाया है।\27 साल का वनवास कांग्रेस की कोशिश अपना वोट बैंक वापस हासिल करने की है, जिस पर कब्जा कर AAP दिल्ली की राजनीति में अजेय बन गई है तो पिछले तीनों लोकसभा चुनाव में सभी सातों सीटें जीतने के बावजूद हर विधानसभा चुनाव में अपमानजनक हार का कड़वा घूंट पीने को मजबूर BJP लगभग 27 साल से दिल्ली की सत्ता से वनवास झेल रही है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर तक कमल खिल जाने के मद्देनजर तो यह चिराग तले अंधेरा जैसी स्थिति है, पर इस बार भी उजाला हाथ की करामात पर ज्यादा निर्भर करेगा। कांग्रेस अपने वोट बैंक का एक ठीकठाक हिस्सा भी वापस पाने में सफल हो गई तो AAP की मुश्किलें बढ़ेंगी, जिससे BJP अपने मकसद में कामयाब हो सकती है
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