तारीख- 28 मार्च 1737 जगह- मुगलों की राजधानी दिल्ली पेशवा बाजीराव की सेना ने मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के महल से सिर्फ 4 कोस दूर कालकाजी मंदिर के पास ताल कटोरा के मैदान में डेरा डाल दिया। दिल्ली को कब्जे में लेकर बाजीराव ने बादशाहMaharashtra Story Explained; Peshwa Bajirao VS Mughal Emperor Muhammad Shah ‘महाराष्ट्र की कहानी’ सीरीज के दूसरे एपिसोड...
शिवाजी ने 26 साल औरंगजेब से मराठा साम्राज्य बचाया; महाराष्ट्र में कैसे घुसे अंग्रेजपेशवा बाजीराव की सेना ने मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के महल से सिर्फ 4 कोस दूर कालकाजी मंदिर के पास ताल कटोरा के मैदान में डेरा डाल दिया। दिल्ली को कब्जे में लेकर बाजीराव ने बादशाह के पास एक संदेश भिजवाया-
1630 ईस्वी में शाहजी और जीजाबाई को शिवनेर के किले में एक बेटा हुआ। नाम रखा गया शिवाजी। शिवाजी के पिता शाहजी निजाम के अधीन पूना के एक छोटे जागीरदार थे। 1630 से 1636 तक, शाहजी युद्धों में व्यस्त रहने के चलते घर से दूर रहे। शिवाजी की परवरिश दादोजी कोंडदेव और मां जीजाबाई की देखरेख में हुई।हालांकि इतिहासकार जदुनाथ सरकार कहते हैं कि शाहजी, जीजाबाई से अलग होकर तुकाबाई मोहिते के साथ रहने चले गए थे। तुकाबाई और शाहजी का भी एक बेटा हुआ-...
कोंकण के किले पर सिद्दी राजाओं का कब्जा था, जिनके पास मजबूत जहाज थे। उन्हें हराने के लिए शिवाजी ने जहाज बनाए और बाद के सालों में एक मजबूत नौसेना खड़ी कर ली। शिवाजी तो वार से बच गए, लेकिन उन्होंने बाघ-नख निकालकर अफजल के पेट पर वार कर दिया। घायल अफजल भागा तो शिवाजी के एक साथी ने उसका सिर कलम कर दिया। जब शिवाजी ने अहमदनगर का किला लूटा तो औरंगजेब ने शिवाजी से लड़ने के लिए जय सिंह को भेजा। जय सिंह 14 हजार सैनिकों की फौज लेकर 3 मार्च 1665 को दक्कन पहुंचे।
करीब 2 साल तक शांत रहने के बाद जनवरी 1670 में शिवाजी ने फिर मुगलों के साथ युद्ध छेड़ दिया। उन्होंने पुणे के पास कोंडाना के इलाके पर कब्जा किया। हालांकि इस युद्ध में शिवाजी के खास साथी तानाजी मालसुरे मारे गए। मुगल इतिहासकार खफी खान शिवाजी के बड़े आलोचक थे। उन्होंने शिवाजी को 'नरक का कुत्ता' तक कह दिया था। खफी खान ने लिखा था,
इस जवाब पर भड़के औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को पुणे के पास तुलापुर में उनका सिर कलम करवा दिया। बाद में मराठों ने उनके शरीर को सिलकर उसका अंतिम संस्कार किया। साल 1700 में राजाराम के बाद उनकी विधवा ताराबाई अपने बेटे शिवाजी द्वितीय को राजा बनाना चाहती थीं, लेकिन वह कामयाब नहीं हुईं। इधर औरंगजेब के बेटे आजम शाह ने शिवाजी के बेटे शाहूजी को जेल से रिहा कर दिया। शर्त यह थी कि शाहूजी मुगलों के लिए काम करेंगे।
1720 में बालाजी की मौत के तुरंत बाद शाहूजी ने 20 साल के बाजीराव को पेशवा बना दिया। इस समय तक मुगल और निजाम फिर से एकजुट हो चुके थे। पेशवा बाजीराव ने अपने 40 साल के जीवन में 41 लड़ाइयां लड़ीं और सभी में जीते।इतिहास में ऐसा कोई जो शिवाजी से मेल खाता हो, वह पेशवा बाजीराव थे। महाराष्ट्र के महानतम सेनापतियों में से एक बाजीराव की तुलना नेपोलियन बोनापार्ट से की जा सकती है।बुद्धिमान ब्राह्मण बाजीराव के पास दो चीजें थीं- योजनाएं बनाने के लिए सिर और उनका क्रियान्वयन करने के लिए...
घबराए मुगल बादशाह मुहम्मद शाह ने अवध के गवर्नर सआदत अली खान को मराठाओं को रोकने भेजा। सआदत की करीब एक लाख सैनिकों की फौज ने होलकर को एक हद तक पीछे धकेल दिया। सआदत को जीत महसूस हुई तो उसने सोचा अब बाजीराव दिल्ली के अपने अभियान के बारे में दोबारा सोचेंगे। मुगल कैंप में जश्न मनाया जाने लगा। इधर बाजीराव ने अपनी योजना बदली, लेकिन इस तरह कि अगले 4 दिन में वह सेना लेकर दिल्ली के अंदर दाखिल हो गए।
असल में बाजीराव नहीं चाहते थे कि दिल्ली में लूटपाट हो। उनकी राजधानी पुणे थी, उन्हें दिल्ली पर शासन नहीं करना था। पेशवा को ये भी मालूम था कि सआदत खां और खान दौरां की सेना पूरी मजबूती से दिल्ली पहुंचने वाली थीं। आखिरकार 7 जनवरी 1739 के दिन निजाम को बाजीराव से संधि करनी पड़ी। निजाम ने हर्जाने के तौर पर बाजीराव को 50 लाख रुपए और नर्मदा के आसपास का एक बड़ा इलाका दिया। यह बाजीराव की आखिरी लड़ाई थी। इस जंग के कुछ महीने बाद अचानक 28 अप्रैल 1940 को लू लगने या किसी तरह के बुखार से बाजीराव की मृत्यु हो गई।
रघुनाथ राव आखिरकार कुछ समय के लिए पेशवा बने भी, लेकिन विद्रोह के चलते उन्हें गद्दी से उतरना पड़ा और नारायण राव के सिर्फ 40 दिन के बेटे सवाई माधवराव अगले पेशवा बने, ऐसे में सदाशिवराव के वफादार रहे नाना फडणवीस ने सत्ता चलाई।
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