दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला दिया है कि पत्नी को हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है, भले ही वह अपने पति के साथ हुए समझौते पर अमल ना करे.
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसे सुनकर के बाद भरी अदालत में ही वाइफ चहकने लगी जबकि उसके पति का चेहरा पूरी तरह से उतर गया. यह पूरा मामला हज्बैंड -वाइफ के बीच मैरिटल डिस्प्यूट से जुड़ा है. दोनों के तलाक का मामला इस वक्त फैमिली कोर्ट में है.
इसी बीच न्यायमूर्ति रेखा पल्ली और सौरभ बनर्जी की बेंच ने साफ कर दिया कि पत्नी हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत अंतरिम भरण-पोषण का दावा कर सकती है, भले ही वह अपने पति के साथ उस समझौते पर अमल ना करे जिसमें भरण-पोषण की शर्तों को अंतिम रूप देने की मांग की गई थी. पेश मामले में पहले फैमिली कोर्ट की तरफ से महिला की याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसके विरोध में उसने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने साफ कर दिया कि लागू नहीं हो सका समझौता पति या पत्नी को उनके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता. उक्त समझौते पर अमल न किए जाने के कारण इसे अपीलकर्ता पत्नी या पति पर बाध्यकारी नहीं माना जा सकता. भले ही समझौता लागू ना हो… इस केस में फैमिली कोर्ट ने इसी साल 15 अप्रैल को वाइफ को अंतरिम भरन-पोषण देने से साफ इंकार कर दिया था. निचली अदालत ने कहा था कि पत्नी 1 दिसंबर, 2012 को दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते की शर्तों से बंधी हुई है, भले ही समझौता कभी लागू ना हुआ हो. हाईकोर्ट ने इस तर्क को सही नहीं माना और कहा कि पत्नी को हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत उसके वैधानिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने माना कि धारा 24 के तहत जिनके पास खुद का भरण-पोषण या मुकदमेबाजी की लागत झेलने के साधन नहीं हैं, उस पति या पत्नी के लिए अंतरिम भरण-पोषण का प्रावधान है. ‘पत्नी ने अपना हक खो दिया’ हाईकोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान के तहत वैधानिक अधिकार को एक नहीं फॉलो किए गए समझौते के द्वारा नकारा नहीं जा सकता. बेंच ने कहा कि हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि विद्वान पारिवारिक न्यायालय ने यह मानने में गलती की है कि 01.12.2012 को दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते के कारण अपीलकर्ता पत्नी ने अपने और अपने नाबालिग बच्चे के लिए भरण-पोषण का दावा करने का अपना अधिकार खो दिया है
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