दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में दलित मतदाताओं की भूमिका अहम है. राजनीतिक दल दलित समुदाय को लुभाने के लिए अपनी नीतियों और वादों पर जोर दे रहे हैं. इस बार भी सत्ता की चाबी दलित मतदाताओं के हाथ में हो सकती है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव (2025) में राजनीति क दलों के बीच कड़ा मुकाबला छिड़ गया है. सभी पार्टियां, चाहे आम आदमी पार्टी ( AAP ), भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) या भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress), से सत्ता हासिल करने के लिए घनिष्ठ दौड़ में लगी हुई हैं. इस चुनाव में दलित मतदाताओं की भूमिका अहम है, क्योंकि दिल्ली की राजनीति में वे एक बड़े फैक्टर के रूप में देखे जाते हैं.दिल्ली में दलित मतदाताओं की संख्या करीब 17 प्रतिशत है, और ये संख्या दिल्ली की राजनीति को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
प्रदेश में 70 विधानसभा सीटों में से 12 सीटें अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं, जबकि लगभग 20 सीटों पर दलितों का प्रभाव देखने को मिलता है. 2020 में 12 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी, 2015 में भी AAP ने 12 सीटें जीती थीं और सरकार बनाई थी. 2013 में AAP ने 9 सीटें जीती थीं और सरकार बनाई थी.इस बार भी सत्ता की चाबी दलित मतदाताओं के हाथ में हो सकती है. सभी पार्टियां दलित समुदाय को आकर्षित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं. बीजेपी ने 14, कांग्रेस ने 13 और आम आदमी पार्टी ने 12 दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इसमें बीजेपी और कांग्रेस ने आरक्षित सीटों से ज्यादा दलित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है, यानी बीजेपी और कांग्रेस ने सामान्य सीटों पर भी दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बीजेपी ने दो दलित उम्मीदवार सामान्य सीट से उतारे हैं - मटिया महल से दीप्ति इंदौरा और बल्लीमारान से कमल बागड़ी. वहीं कांग्रेस ने एक दलित उम्मीदवार अरुणा कुमारी को सामान्य सीट नरेला से उतारा है. इस प्रकार, सभी पार्टियां दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी नीतियों और वादों पर ज़ोर दे रही हैं
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