दिखावे के चक्कर में लोग दूसरों के जैसा बनने की कोशिश करने लगते हैं। अपनी मौलिकता और बुनियाद भूल जाना भी उन्हें परेशान नहीं करता। जबकि जितनी कोशिश हम दूसरों के जैसा बनने की करते हैं, उतनी कोशिश अगर खुद को संवारने में करें तो ज्यादा अच्छा हो।
चंदन कुमार चौधरी जेब खाली है, लेकिन समाज के लोग, रिश्ते-नातेदार क्या सोचेंगे, इसकी चिंता कुछ लोगों को सताए जा रही है। ऐसे लोग सोच नहीं पा रहे हैं कि उनके यहां जो काम है, वह सामान्य तरीके से करें या समाज में लोगों की परवाह करते हुए दिखावा करते हुए करें। दिखावे के चक्कर में रुपया ज्यादा खर्च होगा और जो काम है, वह बहुत कम खर्च में हो जा सकता है। मगर क्या करें कि आज की तारीख में लोगों के लिए दिखावा ज्यादा जरूरी हो गया है। सामान्य तरीके से कोई काम कराने के बजाय जिसे देखो वही दिखावा करने में लगा हुआ...
उद्देश्य की पूर्ति पर जोर दें तो बहुत कुछ बदल सकता है। इसके लिए सोच में बदलाव की जरूरत है। जब हम किसी के यहां जाते हैं तो उसके बारे में अगले कुछ समय तक हमारे मनो-मस्तिष्क में बातें चलती रहती हैं। अगर हम उनका जीवन वैभव या विलासितापूर्ण देखते हैं तो हम भी उन्हीं की तरह जीना चाहते हैं। मन ही मन हम तुलना करने लगते हैं। हमें लगता है कि हम भी उनके जैसा बनें। उनके घर में कोई सामान देखा तो अपने घर में भी वैसा ही चाहते हैं। यह सामाजिक हैसियत का विषय हो जाता है। इस चक्कर में कई लोगों को काफी परेशानी...
Society Displaying Opulence Trapped Show Off
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