नीमच जिले के रावणरूंडी गांव में दशहरा की बजाए शरद पूर्णिमा पर रावण दहन की प्रथा है, जो लगभग 100 सालों से जारी है। यहां 21 फीट ऊंची रावण की मूर्ति है और मेले का आयोजन होता है, जिसमें देवियों के विशेष चक्र लगाने के बाद रावण का पुतला जलाया जाता है।
नीमच: अमूमन शारदीय नवरात्रि खत्म होने के बाद 10वें दिन देशभर में रावण दहन होता है। मान्यता है कि दशमी पर श्रीराम भगवान ने रावण का वध किया था। इसके ठीक 20 दिन बाद दीपावली मानते हैं, इसके पीछे मान्यता है कि दीपावली पर श्रीराम भगवान रावण वध करने के साथ वनवास खत्म कर अपने घर अयोध्या लौटे थे।यहां शरद पूर्णिमा पर होता है रावण दहन हालांकि नीमच जिले में एक ऐसा स्थान है, जहां रावण दहन दशहरे पर नहीं बल्कि 5 दिन बाद शरद पूर्णिमा पर होता है। इसके पीछे भी कई तरह की किंवदंतियां है। दशहरे के 5 दिन बाद...
आधारित है। जो शहर में मराठों के आगमन के साथ शुरु हुई थी। जब यह नगर ग्वालियर स्टेट में शामिल हुआ तब से मराठे नीमच में बसे और 1733 में राणो जी सिंधिया द्वारा गढ़ी का निर्माण करवाया था। तब से यहां दरबार हाल बना कर दशहरा उत्सव की प्रथा शुरु हुई थी। हालांकि इसकी कई अन्य किवदंतियां भी प्रचलित हैं। इसलिए है रावणरूंडी नामपहले सभी जागीरदार जुलूस के साथ नगर के बाहर ऊंचे टीले पर शमी वृक्ष की पूजा करते थे। इसके साथ ही दशहरा उत्सव विजय के प्रतीक के रुप में शुरु होता था। रावण रुंडी उसी विजय के प्रतीक का स्थान...
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