धरती १.५ डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान की तरफ बढ़ रही है

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धरती १.५ डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान की तरफ बढ़ रही है
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नये डेटा से पता चला है कि धरती १.५ डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान की तरफ एक और कदम बढ़ा चुकी है। दुनिया के नेताओं ने एक दशक पहले इस सीमा को रोकने का वादा किया था।

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५ डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान की तरफ एक और कदम बढ़ा चुकी है। जबकि दुनिया के नेताओं ने एक दशक पहले कसम खाई थी कि वो इसे रोकने की कोशिश करेंगे। द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस इस मामले में ग्लोबल डेटा उपलब्ध कराने वाली प्रमुख सेवाओं में से एक है। इसी ने शुक्रवार को बताया कि २०२४ वो पहला कैलेंडर साल था, जिसने इस सीमा को पार किया। रिकॉर्ड पर यह दुनिया का सबसे गर्म साल था। यह पहली बार है जब औसत वैश्विक तापमान पूरे कैलेंडर वर्ष में १८५०- १९०० (औद्योगिकीकरण के पूर्व का समय) के औसत से १.६ डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि १.५ डिग्री सेल्सियस का टारगेट टूट गया है। मगर, यह जरूर है कि हम ऐसा करने के क़रीब जा रहे हैं, क्योंकि जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन के कारण वातावरण गर्म होता जा रहा है। पिछले सप्ताह ही संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही के तापमान रिकॉर्ड का वर्णन 'क्लाइमेट ब्रेकडाउन' के रूप में किया था। क्या भूटान अपनी खुशहाली इस तरह बनाए रख सकता है? रूस-यूक्रेन युद्ध इस साल ख़त्म होने की कितनी संभावना, क्या पुतिन और ज़ेलेंस्की के बीच युद्ध विराम पर बन सकती है बात? उन्होंने अपने नए साल के संदेश में सभी देशों से प्लेनेट वॉर्मिंग गैसों के उत्सर्जन को कम करने की अपील की थी। भारत में इस तरह के पानी में होने वाली मछली पर क्यों मंडरा रहा है ख़तरा? पिछले दस साल रिकॉर्ड पर सबसे ज़्यादा गर्म साल रहे हैं द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस के डेटा के मुताबिक, साल २०२४ में वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल से लगभग १.६ डिग्री सेल्सियस ज़्यादा था। यह वो समय था, जब इंसानों ने ज़्यादा मात्रा में पेट्रोल, डीज़ल और कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल शुरू कर दिया था। यह साल २०२३ के रिकॉर्ड से केवल 0.1 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा है। इसका मतलब है कि पिछले दस साल रिकॉर्ड पर सबसे ज़्यादा गर्म साल रहे हैं। मौसम कार्यालय, नासा और और अन्य जलवायु समूह शुक्रवार को अपना डेटा जारी करेंगे। ऐसी उम्मीद है कि वो सभी इस पर सहमत होंगे कि साल २०२४ रिकॉर्ड पर सबसे गर्म साल रहा है। हालांकि, सटीक आंकड़ों में कुछ अंतर होगा। पिछले साल की गर्मी मनुष्यों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड जैसी प्लेनेट वॉर्मिंग गैसों के उत्सर्जन के कारण थी, जो अभी भी रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। अल नीनो जैसे प्राकृतिक मौसम के प्रभाव में पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतह पर मौजूद पानी असामान्य तौर पर गर्म हो जाता है। इसने भी इस मामले में छोटी सी भूमिका निभाई है। द यूरोपियन कॉपरनिकस क्लाइमेट सर्विस की डिप्टी डायरेक्टर सामंथा बर्गेस ने बीबीसी को बताया, 'हमारी जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे ज़्यादा योगदान वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की सघनता है।' साल २०१५ में पेरिस में हुए क्लाइमेट समझौते के बाद १.५ डिग्री सेल्सियस का ये आंकड़ा जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बातचीत के मंच का अहम हिस्सा बन गया है। साल २०१८ में आई यूएन की एक ऐतिहासिक रिपोर्ट के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन से होने वाले ख़तरों में तेज़ गर्म हवाएं, समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी, वन्य जीवन को नुक़सान जैसी बातें शामिल हैं। माइल्स एलन यूएन रिपोर्ट के लेखक हैं। वो यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के डिपार्टमेंट ऑफ़ फ़िजिक्स से हैं। वो कहते हैं, 'वास्तव में हम लंबी अवधि की १.५ डिग्री सेल्सियस की सीमा को कब तोड़ देंगे, इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। मगर, हम स्पष्ट तौर पर अब इसके बहुत क़रीब हैं।' वर्तमान संकेत बताते हैं कि २०३० के दशक की शुरुआत तक दुनिया का तापमान १.५ डिग्री सेल्सियस की लंबी अवधि की सीमा को पार कर जाएगा। यह राजनीतिक तौर पर तो महत्वपूर्ण होगा, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जलवायु के लिए होने वाली कार्रवाई का खेल ख़त्म हो जाएगा। अमेरिका में एक रिसर्च फर्म बर्कले अर्थ में जलवायु वैज्ञानिक हैं ज़ेक हॉसफ़ादर। वो कहते हैं, 'ऐसा नहीं है कि १.४९ डिग्री सेल्सियस ठीक है और १.५१ डिग्री सेल्सियस से दुनिया का अंत हो जाएगा। डिग्री का हर दसवां हिस्सा मायने रखता है। और जितनी ज़्यादा गर्मी होगी, जलवायु प्रभाव बदतर होते जाएंगे।' दरअसल, ग्लोबल वॉर्मिंग की एक डिग्री का एक अंश भी लगातार और तीव्र कठोर मौसम ला सकता है। जैसे- गर्म हवाएं और भारी वर्षा। साल २०२४ में, दुनिया ने पश्चिमी अफ्रीका में तेज़ तापमान, दक्षिणी अमेरिका के कुछ हिस्सों में लंबे समय तक सूखा, सेंट्रल यूरोप में भारी वर्षा और उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी एशिया में उष्णकटिबंधीय तूफ़ान को देखा। दावों और वादों के बीच दिल्ली की इस ज़हरीली हवा के लिए ज़िम्मेदार कौन? वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप के अनुसार, यह वो घटनाएं थीं, जो पिछले साल जलवायु परिवर्तन के कारण और तीव्र हो गई थीं। इस सप्ताह, जब नए आंकड़े जारी किए गए हैं। लॉस एंजेलिस तेज़ हवाओं और बारिश की कमी के कारण विनाशकारी जंगल की आग से घिर गया है। इस सप्ताह होने वाली घटनाओं में कई कारक शामिल हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्म हो रही दुनिया में कैलिफ़ोर्निया में आग लगने की अनुकूल परिस्थितियाँ बनती जा रही हैं। यह केवल हवा का तापमान नहीं था, जिसने साल २०२४ में नए निशान छोड़े हैं। दुनिया में समुद्र की सतह भी नई ऊंचाई पर पहुंच गई है। और वातावरण में नमी की मात्रा भी रिकॉर्ड स्तर पर है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दुनिया नए रिकॉर्ड तोड़ रही है। साल २०२४ के गर्म होने की उम्मीद हमेशा से थी। इसकी वजह अल नीनो इफ़ेक्ट था, जो पिछले साल अप्रैल के आसपास ख़त्म हुआ था। यह मनुष्यों द्वारा बढ़ रही वॉर्मिंग से ऊपर था। हाल ही के वर्षों में कई रिकॉर्ड्स का मार्जिन उम्मीद से कम रहा है। मगर, कुछ वैज्ञानिकों को डर है कि यह वॉर्मिंग में तेज़ी का कारण बन सकती ह

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